देख तेरे देश की हालत क्या हो गयी बलिदानी
कितना बदल गया है यहाँ हर एक हिन्दुस्तानी|
की क्यों तुने स्वदेश पर मर मिटने की नादानी
अपनों में ही खोया यहाँ हर एक हिन्दुस्तानी|
की क्यों तुने स्वदेश पर मर मिटने की नादानी
अपनों में ही खोया यहाँ हर एक हिन्दुस्तानी|
जाये भाड़ में कहाँ हैं सोचता कोई देश के लिए यहाँ
तुने किसके लिए लुटा दिया अपना सारा ही जहाँ|
धोखा-फरेब-छल तो सभी ने करने की हैं ठानी
मर मिटा तू किसके लिए ओ मुरख बलिदानी|
मरा तू तिरंगे की शान में देख उसका निरादर
होता जिन्दा गर तू तो झुक जाता तेरा भी सर|
उल्टा फहरा कभी, कभी अंगवस्त्र केक तिरंगा कभी काट देते
बलिदानियों को भी यहाँ अब लोग मजहबो में बाँट देते |
सर झुकाना था जहाँ खानापूर्ति महज वहां कर आते है
अमर-ज्योति को भी खण्डित अब बेशर्म कर जाते है|
जिसके लिए तुने जान कीमती अपनी गँवाई
वही अब कर रहा तैयार तेरे लिए गहरी खाई|
तुझे कर याद आज फिर आंखे भर आयी
सब के सब हुए है यहाँ आज आततायी|
देख तेरे देश की हालत क्या हो गयी बलिदानी
कितना बदल गया है यहाँ हर एक हिन्दुस्तानी|
++ सविता मिश्रा ++
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
abhar varma bhai aapka tahedil se
" बहुत सुन्दर , अतुकांत रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ ................. " |
ओह अब भी सही नहीं हुआ ...ठीक है प्राची sis फिर देखते है ....मेहनत बेकार गयी शायद फिर हमारी ....:)
सुन्दर भाव लेकिन कथ्य संयोजन, शिल्प और टंकण में कई कमियाँ रह गयी हैं अभी.... इसी कथ्य को थोड़े कम बन्दों में सांद्रता के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास अवश्य ही कीजिये आ० सविता मिश्रा जी
इन श्रेष्ठ भावों के लिए बधाई स्वीकारिये
shukriya आदरणीय विजय भैया दिल से ....सादर नमस्ते
आभार _/\_
नीरज भैया क्या अब सही तरीके से कह पायें है बताइयेगा अवश्य .._/\_
जी ब्रिजेश भैया ......आभार आपका
कविता के शिल्प से ज्यादा उसका कहन महत्वपूर्ण होता है. कहन को साधने की जरूरत है.
इस प्रयास पर हार्दिक बधाई!
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