सुमन बदहवास सी घटना स्थल पर पहुंची, अपने बेटे प्रणव की हालत देख बिलखने लगी| भीड़ की खुसफुस सुन वह सन्न सी रह गयी, एक नवयुवती की आवाज सुमन को तीर सी जा चुभी "लड़की छेड़ रहा था उसके भाई ने कितना मारा, कैसा जमाना आ गया ......|" "अरे नहीं, 'भाई नहीं थे', देखो वह लड़की अब भी खड़ी हो सुबक रही है" बगल में खड़ी बुजुर्ग महिला बोली ....यह सुन सुमन का खून खौल उठा, और शर्म से नजरें नीची हो गयी| प्रणव पर ही बरस पड़ी "तुझे क्या ऐसे 'संस्कार' दिए थे हमने करमजले, अच्छा हुआ जो तेरे बहन नहीं है| प्राण ..."मम्मी सुनो तो मैंने ....!" पर सुमन बड़बड़ाती उस लड़की की तरह जाकर बोली "बेटी माफ़ करना, ऐसा नहीं हैं वह, बस संगत आजकल गलत हो गयी है उसकी, बहुत शर्मिंदा ...." "नहीं नहीं आंटी जी उसकी कोई गलती नहीं वह तो मुझे बचा रहा था, उसके साथ जो लड़के थे उन्होंने ही आपके बेटे की यह हालत की, सब भीड़ देख भाग खड़े हुए वर्ना ना जाने क्या होता...!" लड़की सुबकते हुए बोली|
सुन अचानक गर्व हो आया अपने बेटे पर| बेटे के पास जा उसका सर गोद में रख "हमें माफ़ कर देना मेरे बच्चे, हमने कैसे समझ लिया कि मेरा आदर्श बेटा ऐसा कुछ कर सकता है" बिलखते हुए बोली "तुझे समझाती थी न कि संगत अच्छी रख, देखा अब|" "कोई अम्बुलेंस बुलाओ" चीखने लगी सुमन, अब उसकी आँखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे| "संस्कार चाहे जितने भी अच्छे हों बुरी संगत का फल तो भोगना ही पड़ता है" तेरी यह बात गाँठ बाँध ली मैंने, अब बुरी संगत छोड़ दूंगा माँ" .सुन गर्व से सुमन का सर ऊँचा हो गया था|...सविता मिश्रा.....
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सविता मिश्रा
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आभार प्राची sis आपका :)
शिल्प में पर अभी काफी कमियाँ रह गयी हैं.......बता देती तो आसानी रहती समझने में :)
सुन्दर लघुकथा प्रयास आ० सविता मिश्रा जी
कथानक अच्छा है..पर शिल्प में पर अभी काफी कमियाँ रह गयी हैं...
इस प्रयास पर हार्दिक शुभकामनाएं
शुक्रिया आप का तहेदिल से
"संस्कार चाहे जितने भी अच्छे हों बुरी संगत का फल तो भोगना ही पड़ता है" तेरी यह बात गाँठ बाँध ली मैंने, अब बुरी संगत छोड़ दूंगा माँ"
बात तो सही है आजकल का माहौल ख़राब हो गया है!
जी भैया ...शुक्रिया
आपने कहा है आदरणीया, कि आप लेखन-अभ्यास कर रही हैं. तो यह आपकी शुरुआत हुई न ?
फिर शुरुआत के आगे धीरे-धीरे बहुत कुछ स्पष्ट होता जायेगा. आप सतत दीर्घकालिक अभ्यासकर्म करें. और टिप्पणियों के माध्यम से कही गयी बातों को सीधे दिल पर न लेकर प्रयास के क्रम में मार्गदर्शन की तरह लें.
आपकी अन्यान्य रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी.
शुभ-शुभ
सौरभ पाण्डेय भैया सादर नमस्ते ..दिल से आभारी हैं हम आपके ....हमें लिखने की कला का ज्यादा ज्ञान नहीं ...वैसे आप क्या बताना चाहे हम यह भी समझ नहीं पाए क्या असंयत हुए है कहीं
आप द्वारा लघुकथा पर हुआ प्रयास आशान्वित कर रहा है. लघुकथा कहने के क्रम में शब्दों से अधिक संयत रहने की आवश्यकता हुआ करती है. संभवतः यह आपकी पहली कथा है, आदरणीया. अतः अभी बधाई स्वीकार करें.
शुभेच्छाएँ.
धन्यवाद आपका
आदरणीया सविता जी,
इस मंच पर हम सभी सीखते है, और ये मंच ही तारीफ़ के साथ साथ सिखाने की बात करता है. अन्य जगह केवल वाहवाही मिलती है.
सुधीजन अपने विचार अवश्य देंगे..
सादर.
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