"कुछ सिखाओं अपनी माँ को | शहर में रहते पच्चीसों साल हो गये पर रही गंवार की गंवार |"
" बड़े साहब कितनी बार कहें बैठ जाओ पर ये बैठी नहीं |"
"कइसे बैठती जी, वो 'पैताने' बैठने को कहत रहा | "...सविता मिश्रा
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
मदन भैया ऐसा क्या हमने लिखा जो समझ स पर हो गया आपके
samajh se pare
आप सभी आगंतुकों का तहेदिल से आभार व्यक्त करतें हैं ..आपकी प्रतिक्रियाओ से सीख मिलती हैं ...जो लिखते वक्त लगता हैं सही लिखा हैं उसकी प्रतिक्रिया के बाद पता चलता हैं कि कहीं तोकुछ कमी हैं ...इसमें भी कमियाँ निकली पर कुछ ने सही ठहराया ..दोनों तरह के अनुभवी लोगों का सादर आभार ...यूँ ही मार्गदर्शन करतें रहियें ....आप केबोलने से ही हम सीखते हैं सादर
आदरणीय सौरभ भैया दिल से आभार ...सादर नमस्ते
कलम चलते चलते कभी कभी अनजाने में अच्छी चल जाती हैं | सही कहते लोग मुर्ख भी और बच्चा भी ज्ञान की भाषा कभी न कभी बोल जाता हैं....आज शायद हमरी कलम भी चल गयी | ..कुछ ऐसा ही महसूस हो रहा हैं आज
आपकी कथा को तो पढ़ा ही, इस कथा पर आयी प्रतिक्रियाओं को भी पढ़ा, आदरणीया सविताजी. आपकी कथा का मर्म बहुत ही महीन है. पैताने वाली बात मुझे गहरे छू गयी. कथा के साहेब को शायद पता न होगा और अनजाने में उनके द्वारा दिया गया सम्मान भी वृद्धा माता को नागवार गुजरा. अवश्य गुजरा होगा.
आपकी इस लघुकथा की अंतरधारा का हम सम्मान करते हैं आदरणीया..
सादर
जिंतेंद्र भाई बहुत बहुत शुक्रिया दिल से
अमन भाई और श्याम भाई दिल से आभार आपका व्यक्त करतें हैं ..सहीं कहा आपने लाभ और लोभ दोनों भारी पड़ते है संस्कार गौड़
गोडवारी भी कहते हैं हरी भैया ....
परबत के पैताने पहुँचे परबत के सिरहाने भी
कहाँ-कहाँ तक ले जाते हैं अक्सर कई बहाने भी......ये रामकुमार कृषक जी की कविता है
जब ये गाना सुने ही हैं फिर कैसी समस्या ....हमने तो नहीं सुना ..बस लिखते समय पैताने ही शब्द दिमाग में आया .....mudsire, godsire भी आ रहा हैं दिमाग में शायद कहते हैं
इस बार जा रहें हैं इलाहाबाद ध्यान से सुनेगे आंचलिक शब्द
माननीय राजकुमार भैया आभार ..सही कहा पहले घुट्टी में ही मिलते थे ..अब सब चलता हैं जैसे संस्कार घुटाये जातें हैं
बहुत सुंदर लघुकथा, आदरणीया सविता जी. बधाई आपको
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