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पछतावा (लघुकथा )

"बाबा आप अकेले यहाँ क्यों बैठे हैं, चलिए आपको आपके घर छोड़ दूँ | "
बुजुर्ग बोले:

"बेटा जुग जुग जियो तुम्हारे माँ -बाप का समय बड़ा अच्छा जायेगा | और तुम्हारा समय तो बड़ा सुखमय होगा |"
"आप ज्योतिषी हैं क्या बाबा |"
हंसते हुय बाबा बोले - "समय ज्योतिषी बना देता हैं | गैरों के लिय जो इतनी चिंता रखे वह संस्कारी व्यक्ति दुखित कभी नही होता | " आशीष में दोनों हाथ उठ गये |
"मतलब बाबा ? मैं समझा नहीं | "
"मतलब बेटा मेरा समय आ गया | अपने माँ बाप के समय में मैं समझा नहीं कि मेरा भी एक न एक दिन तो यही समय आएगा | समझा होता तो ये समय ना आता |" नजरे धरती पर गड़ा दी कह | 

.

सविता मिश्रा
"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by savitamishra on May 27, 2015 at 3:58pm

आभार सौरभ भैया आपका ...सादर नमस्ते


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 27, 2015 at 12:10am

इस उद्येश्यपूर्ण लघुकथा केलिए हार्दिक बधाई, आदरणीया सविता जी..

Comment by savitamishra on May 16, 2015 at 10:48pm

वर्मा भाई दिली आभार

Comment by savitamishra on May 16, 2015 at 10:47pm

भंडारी भैया सादर शुक्रिया ....सादर नमस्ते

Comment by Shyam Narain Verma on May 16, 2015 at 11:36am
बहुत उम्दा , बधाई इस लघुकथा के लिए ..

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 16, 2015 at 10:30am

बहुत सुन्दर बात कही आपने , आदरनीया सविता जी , जैसा देते हैं वही तो पाते हैं ! हार्दिक बधाई कथा के लिये ॥

Comment by savitamishra on May 15, 2015 at 10:38pm

दिली आभार आप सभी का ...शब्द नहीं है आप सभी की खुले दिल से तारीफ का शुक्रिया अदा करने के लिए
सादर नमस्ते विजय भैया

Comment by Hari Prakash Dubey on May 15, 2015 at 10:21pm

 आदरणीय सविता मिश्रा जी ,बहुत खूब , सुन्दर  रचना ! बधाई आपको .

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 15, 2015 at 8:25pm
सत्य वचन, बधाई , आदरणीय सुश्री सविता मिश्रा जी, सादर।
Comment by Tanuja Upreti on May 15, 2015 at 7:31pm
मार्मिक रचना।

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