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सच्ची सुहागन (लघुकथा)

पूरे दिन घर में आवागमन लगा था | दरवाज़ा खोलते बंद करते श्यामू परेशान हो गया था | घर की गहमागहमी से वह इतना तो समझ चूका था कि बहूरानी का उपवास हैं | सारे घर के लोग उनकी तीमारदारी में लगें थें | माँजी सरगी की तैयारी के लिय उसे बार-बार आवाज दे रही थी | सारी सामग्री उन्हें देने के बाद वह खाना खिलाने लगा घर के सभी सदस्यों को | फिर फुर्सत हो माँजी से कह अपने घर की ओर चल पड़ा |
बाजार की रौनक देख अपनी जेब टटोली महज दो सौ रूपये | सरगी के लिय ही ५० रूपये तो खर्च करने पड़ेंगे आखिर त्यौहार पर फल इतने महंगे जो हो जातें | मन को समझा उसने सरगी के लिय आधा दर्जन केले खरीद ही लिये | वह भी अपनी दुल्हन को सुहागन रूप में सजी-धजी देखना चाहता था ,अतः  १०० रूपये की साड़ी और सृंगार सामग्री भी ले ली | १०० रूपये की साड़ी को देख सोचने लगा मेरी पत्नी तो इसमें ही खुश हो जायेगी | उसकी धोती में बहत्तर तो छेद हो गये हैं | अब कोठी वालों की तरह न सही ,पर दो चार साल में तन ढ़कने का एक कपड़ा तो दिला ही सकता हूँ | 'बहूरानी की तरह मुहं थोड़े फुलाएगी | कैसे माँजी की दी साड़ी पर बहूरानी नाक-भौं सिकोड़ रही थी | फिर छोटे मालिक के साथ जाकर दूसरी साड़ी लें ही आईं|'
मन में गुनते हुय ख़ुशी-ख़ुशी सब कुछ लेकर घर पहुंचा| अपने छोटे साहब की तरह ही वह भी अपनी पत्नी की आंख बंद करते हुय बोला, "सोचो-सोचो क्या लाया हूँ मैं ?"
"बड़े खुश लग रहें हो | लगता हैं बच्चों को, कल के लिय भरपेट खाने को लाये हो !!"

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by savitamishra on November 2, 2015 at 11:46pm

आभार शेख भाई आपका।.....असल में बड़े कमजोर हैं लिखने में अतः समझ न आ रहा कि कहाँ टंकण त्रुटी हैं...कि बताएंगे आप..!! आभार पुन आपका 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 2, 2015 at 8:45am
आदरणीया सविता मिश्र जी कथा मेंकुछ टंकण त्रुटियों पर ध्यान दीजिएगा।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 2, 2015 at 8:43am
बहुत अच्छी रचना है आदरणीया सविता मिश्र जी। अंतिम पंक्ति ज़ोरदार है, सब कुछ कह रही है।मेरे विचार से कोई पंक्ति जोड़ने की ज़रूरत नहीं है। हो सकता है सुधीजन को कहीं कहीं विवरण कुछ ज़्यादा लगे। भावपूर्ण संदेश वाहक रचना के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको।
Comment by savitamishra on November 1, 2015 at 3:23pm

आभार आदरणीय निता दी जी ....कुछ तो कमी सी हैं जो हमारे पल्ले न पड़ रही....फिर भी आपको भाई आभार

अभी आपके कमेंट के बाद दिदखि यह तो फिर पढ़े ...लग रहा एक लाइन और जोड़ दें....मन में अपनी पत्नी और बहूरानी की तुलना करते हुये अपनी पत्नी का ही पलड़ा भारी पा रहा था.....कैसी रहेगी फिर .._/\_सादर

Comment by Nita Kasar on November 1, 2015 at 1:28pm
ग़रीबी भी एेसा रोग जो अरमानों को उड़ने का मौक़ा नहीं देती,जहाँ परिवार के लिये पहली प्राथमिकता भोजन हो वहाँ पत्नि और क्या सोचेंगी संवेदनशील कथा के लिये हार्दिक बधाईयां आद०सविता मिश्रा जी ।

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