सावन की कसम
कसक उठी मन में
तार दिल के झनझना दिये.
बारिश की फुहारों ने
तपते बदन को छू
नस नस में तूफ़ान मचा दिये.
उफ़ ! सावन के इस ग़दर ने
प्रियतम की प्यास बढ़ाकर
मस्तिष्क की तरंगों को
कई गुना शून्य लगा दिये.
अब तुम आ जाओ प्रिये
एक एक पल न गुजर रहे ,
तुम्हे सावन की कसम
जो यदि नज़र फेर चल दिये.
-दिनेश सोलंकी
स्वरचित और अप्रकाशित
Added by dinesh solanki on August 9, 2013 at 5:00pm — 7 Comments
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