तब होके रहेगा गोल...!
---------------------------
पूछा मैंने नन्ही शहरी चिड़िया से
तपती धरती पर तुम क्यों
इस तरह उतर आई .....!
आकाश की ओ स्वछन्द परी,
स्वार्थी इंसानों की दुनिया में
नाहक ही मरने को आयी?
बोली बेचारी मायूस होकर
जहाँ जहाँ था हमारा बसेरा
वहां वहां कट गये वृक्ष के आशियाने
तन गए इंसानों के गगनचुम्बी महल
ये देख हमारी बिरादरी के दिल गए दहल.
अब न मिलती छाँव है
न हवा, न मिलता कहीं जल है.
मैं सोच रही अपने छोटे दिमाग से
इंसानी जाति को कैसा लगा जंग है!
कैसे सुनहरा होगा
हमारा और तुम्हारा आने वाला कल!
जब सीमेंट कांक्रीट के जंगल का
इंसान भी नहीं चाहता कोई हल..!
पर्यावरण खतरे में पड़ चुका है,
मानव जाति संकट में है,
चारों और विनाश का डंका
बज चुका है.
अब प्रकृति न रही अनमोल
धरती का बिगड़ा ऐसा भूगोल
हम जैसों का भी नहीं रहा मोल.
मनुष्य जाति को सम्हलना होगा,
सोते रहे, तो दंड भुगतना होगा
अन्यथा होगा हर जीवन में घनघोर अँधेरा
न गूंजेंगी किलकारी कोई,
न सुनाई देंगे इंसानी बोल
विनाश के जीत का
सीधा सीधा हो जायेगा गोल..
-दिनेश सोलंकी
अप्रकाशित और स्वरचित रचना प्रकाशनार्थ प्रेषित [ छाया: दिनेश सोलंकी ]
Comment
dhanywad vishalji, sandeepji, amanji, poojaji
पूछा मैंने नन्ही शहरी चिड़िया से
तपती धरती पर तुम क्यों
इस तरह उतर आई .....!
वाह - वाह.....अत्यन्त सुन्दर एवं सार्थक रचना हेतु हार्दिक बधाई !!!!
coontiji कितना सुन्दर वर्णन है आपकी अनुभूति का, काश सभी इन नन्हों की देखभाल में आगे आ जाये.
कितना सुन्दर वर्णन है आपकी अनुभूति का, काश सभी इन नन्हों की देखभाल में आगे आ जाये.
आपने नन्हीं सी जान की आवाज़ अवाम तक पहूँचा दी, बहुत ही नेक कार्य है . मैं तो रोज़ अपने आँगन में इन के लिये दाना पानी देती हूँ और इन के लिये झाड़ियों भी लगा दी है , अब रोज़ सुबह ये मुझे गाना गा कर जगाते है .ये स्वतंत्र हो कर उड़ते हैं और शाम को इन कुंजों में सो जाते हैं. उस में एक जोड़े बुलबुल भी है./सादर / कुंती.
बहुत सुंदर संदेश देने का प्रयास किया है आदरणीय इस रचना में आपने सादर बधाई हो आपको
सुंदर भावों की अभ्व्यक्ति के लिए बधाई श्री दिनेश सोलंकी जी, यह कटु सत्य है कि इन्सान के कृत्यों से
जो पर्यावरण असंतुलि हो रहा है, उससे निरीह पशु पक्षी तक आहत है | हम उपलब्धि के नाम पर जीत
की ख़ुशी में विनाश के ही बीज बो रहे है | इस पर जितना लिखा जाय, जन जन को आगाह और जागरूक
किया जाय, कम ही है | बधाई
मेरी रचना को पसंद करने वाले आप सभी मित्रों, स्नेहियों का आभारी हूँ.
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
अच्छी रचना के लिए बधाई |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online