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तब होके रहेगा गोल...!

तब होके रहेगा गोल...!
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पूछा मैंने नन्ही शहरी चिड़िया से
तपती धरती पर तुम क्यों
इस तरह उतर आई .....!
आकाश की ओ स्वछन्द परी,
स्वार्थी इंसानों की दुनिया में
नाहक ही मरने को आयी?
बोली बेचारी मायूस होकर
जहाँ जहाँ था हमारा बसेरा
वहां वहां कट गये वृक्ष के आशियाने
तन गए इंसानों के गगनचुम्बी महल
ये देख हमारी बिरादरी के दिल गए दहल.
अब न मिलती छाँव है
न हवा, न मिलता कहीं जल है.
मैं सोच रही अपने छोटे दिमाग से
इंसानी जाति को कैसा लगा जंग है!
कैसे सुनहरा होगा
हमारा और तुम्हारा आने वाला कल!
जब सीमेंट कांक्रीट के जंगल का
इंसान भी नहीं चाहता कोई हल..!
पर्यावरण खतरे में पड़ चुका है,
मानव जाति संकट में है,
चारों और विनाश का डंका
बज चुका है.
अब प्रकृति न रही अनमोल
धरती का बिगड़ा ऐसा भूगोल
हम जैसों का भी नहीं रहा मोल.
मनुष्य जाति को सम्हलना होगा,
सोते रहे, तो दंड भुगतना होगा
अन्यथा होगा हर जीवन में घनघोर अँधेरा
न गूंजेंगी किलकारी कोई,
न सुनाई देंगे इंसानी बोल
विनाश के जीत का
सीधा सीधा हो जायेगा गोल..
-दिनेश सोलंकी
अप्रकाशित और स्वरचित रचना प्रकाशनार्थ प्रेषित [ छाया: दिनेश सोलंकी ]

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Comment by dinesh solanki on June 2, 2013 at 6:26am

dhanywad vishalji, sandeepji, amanji, poojaji

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on June 1, 2013 at 9:43pm

पूछा मैंने नन्ही शहरी चिड़िया से 
तपती धरती पर तुम क्यों 
इस तरह उतर आई .....!

वाह - वाह.....अत्यन्त सुन्दर एवं सार्थक रचना हेतु हार्दिक बधाई !!!!

Comment by dinesh solanki on May 31, 2013 at 10:16pm

coontiji कितना सुन्दर वर्णन है आपकी अनुभूति का, काश सभी इन नन्हों की देखभाल में आगे आ जाये.

Comment by dinesh solanki on May 31, 2013 at 10:16pm

कितना सुन्दर वर्णन है आपकी अनुभूति का, काश सभी इन नन्हों की देखभाल में आगे आ जाये. 

Comment by coontee mukerji on May 31, 2013 at 1:11pm

आपने नन्हीं सी जान की आवाज़ अवाम तक पहूँचा दी, बहुत ही नेक कार्य है . मैं तो रोज़ अपने आँगन में इन के लिये दाना पानी देती हूँ और इन के लिये झाड़ियों भी लगा दी है , अब रोज़ सुबह ये मुझे गाना गा कर जगाते है .ये स्वतंत्र हो कर उड़ते हैं  और शाम को इन कुंजों में सो जाते हैं.   उस में एक जोड़े बुलबुल भी है./सादर / कुंती.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 31, 2013 at 11:34am

बहुत सुंदर संदेश देने का प्रयास किया है आदरणीय इस रचना में आपने सादर बधाई हो आपको 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 31, 2013 at 11:12am

सुंदर भावों की अभ्व्यक्ति के लिए बधाई श्री दिनेश सोलंकी जी, यह कटु सत्य है कि इन्सान के कृत्यों से 

जो पर्यावरण असंतुलि हो रहा है, उससे निरीह पशु पक्षी तक आहत है | हम उपलब्धि के नाम पर जीत 

की ख़ुशी में विनाश के ही बीज बो रहे है | इस पर जितना लिखा जाय, जन जन को आगाह और जागरूक 

किया जाय, कम ही है | बधाई 

Comment by dinesh solanki on May 31, 2013 at 7:30am

मेरी रचना को पसंद करने वाले आप सभी मित्रों, स्नेहियों का आभारी हूँ.

Comment by Shyam Narain Verma on May 30, 2013 at 5:05pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by aman kumar on May 30, 2013 at 3:12pm

अच्छी रचना के लिए बधाई |

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