For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तब होके रहेगा गोल...!

तब होके रहेगा गोल...!
---------------------------
पूछा मैंने नन्ही शहरी चिड़िया से
तपती धरती पर तुम क्यों
इस तरह उतर आई .....!
आकाश की ओ स्वछन्द परी,
स्वार्थी इंसानों की दुनिया में
नाहक ही मरने को आयी?
बोली बेचारी मायूस होकर
जहाँ जहाँ था हमारा बसेरा
वहां वहां कट गये वृक्ष के आशियाने
तन गए इंसानों के गगनचुम्बी महल
ये देख हमारी बिरादरी के दिल गए दहल.
अब न मिलती छाँव है
न हवा, न मिलता कहीं जल है.
मैं सोच रही अपने छोटे दिमाग से
इंसानी जाति को कैसा लगा जंग है!
कैसे सुनहरा होगा
हमारा और तुम्हारा आने वाला कल!
जब सीमेंट कांक्रीट के जंगल का
इंसान भी नहीं चाहता कोई हल..!
पर्यावरण खतरे में पड़ चुका है,
मानव जाति संकट में है,
चारों और विनाश का डंका
बज चुका है.
अब प्रकृति न रही अनमोल
धरती का बिगड़ा ऐसा भूगोल
हम जैसों का भी नहीं रहा मोल.
मनुष्य जाति को सम्हलना होगा,
सोते रहे, तो दंड भुगतना होगा
अन्यथा होगा हर जीवन में घनघोर अँधेरा
न गूंजेंगी किलकारी कोई,
न सुनाई देंगे इंसानी बोल
विनाश के जीत का
सीधा सीधा हो जायेगा गोल..
-दिनेश सोलंकी
अप्रकाशित और स्वरचित रचना प्रकाशनार्थ प्रेषित [ छाया: दिनेश सोलंकी ]

Views: 892

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by dinesh solanki on June 2, 2013 at 6:26am

dhanywad vishalji, sandeepji, amanji, poojaji

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on June 1, 2013 at 9:43pm

पूछा मैंने नन्ही शहरी चिड़िया से 
तपती धरती पर तुम क्यों 
इस तरह उतर आई .....!

वाह - वाह.....अत्यन्त सुन्दर एवं सार्थक रचना हेतु हार्दिक बधाई !!!!

Comment by dinesh solanki on May 31, 2013 at 10:16pm

coontiji कितना सुन्दर वर्णन है आपकी अनुभूति का, काश सभी इन नन्हों की देखभाल में आगे आ जाये.

Comment by dinesh solanki on May 31, 2013 at 10:16pm

कितना सुन्दर वर्णन है आपकी अनुभूति का, काश सभी इन नन्हों की देखभाल में आगे आ जाये. 

Comment by coontee mukerji on May 31, 2013 at 1:11pm

आपने नन्हीं सी जान की आवाज़ अवाम तक पहूँचा दी, बहुत ही नेक कार्य है . मैं तो रोज़ अपने आँगन में इन के लिये दाना पानी देती हूँ और इन के लिये झाड़ियों भी लगा दी है , अब रोज़ सुबह ये मुझे गाना गा कर जगाते है .ये स्वतंत्र हो कर उड़ते हैं  और शाम को इन कुंजों में सो जाते हैं.   उस में एक जोड़े बुलबुल भी है./सादर / कुंती.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 31, 2013 at 11:34am

बहुत सुंदर संदेश देने का प्रयास किया है आदरणीय इस रचना में आपने सादर बधाई हो आपको 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 31, 2013 at 11:12am

सुंदर भावों की अभ्व्यक्ति के लिए बधाई श्री दिनेश सोलंकी जी, यह कटु सत्य है कि इन्सान के कृत्यों से 

जो पर्यावरण असंतुलि हो रहा है, उससे निरीह पशु पक्षी तक आहत है | हम उपलब्धि के नाम पर जीत 

की ख़ुशी में विनाश के ही बीज बो रहे है | इस पर जितना लिखा जाय, जन जन को आगाह और जागरूक 

किया जाय, कम ही है | बधाई 

Comment by dinesh solanki on May 31, 2013 at 7:30am

मेरी रचना को पसंद करने वाले आप सभी मित्रों, स्नेहियों का आभारी हूँ.

Comment by Shyam Narain Verma on May 30, 2013 at 5:05pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by aman kumar on May 30, 2013 at 3:12pm

अच्छी रचना के लिए बधाई |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
28 minutes ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
12 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
22 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service