सावन की कसम
कसक उठी मन में
तार दिल के झनझना दिये.
बारिश की फुहारों ने
तपते बदन को छू
नस नस में तूफ़ान मचा दिये.
उफ़ ! सावन के इस ग़दर ने
प्रियतम की प्यास बढ़ाकर
मस्तिष्क की तरंगों को
कई गुना शून्य लगा दिये.
अब तुम आ जाओ प्रिये
एक एक पल न गुजर रहे ,
तुम्हे सावन की कसम
जो यदि नज़र फेर चल दिये.
-दिनेश सोलंकी
स्वरचित और अप्रकाशित
Added by dinesh solanki on August 9, 2013 at 5:00pm — 7 Comments
स्वर्ग है फिर आपका क्या काम?
अमरनाथ गुफा हो, बद्रीनाथ, केदारनाथ, मान सरोवर, आदि प्राकृतिक स्थल की यात्रा हो...हर व्यक्ति लौटकर एक ही जवाब देता है......क्या स्वर्ग है. क्या देव भूमि है ...समझ में नहीं आता जब वो देव भूमि है, स्वर्ग है...तो आप वहां क्यों जा रहे हैं? देवों की पवित्र भूमि पर आप धरतीवासी कदम रखकर उनकी भूमि को अपवित्र क्यों कर रहे हो? क्या वहां जाने वाले सभी शुद्ध मन, विचार के होते हैं? क्या जिंदगी में दो नंबर का धन कमाने वाले भ्रष्ट आचरण के लोग वहां जाने से परहेज करते हैं?…
ContinueAdded by dinesh solanki on July 7, 2013 at 9:22am — 6 Comments
दिल से सुन ओ भाई ....
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किसी की किस्मत पर जलने वालों के
दिलों को ठंडक कहाँ मिलती है,
किस्मत के धनी को इनकी परवाह भी कहाँ होती है.
देख उस खुदा की तरफ जिसने जहाँ बनाया...
तुझे और मुझे खाली हाथ यहाँ भिजवाया.
सद-कर्म से तू मर्म और धर्म का ईमान रख
अपने पे भरोसा कर, नेकी की राह चल.
बुलंदी के रास्ते तो खुद-ब खुद खुल जायेंगे
जलता रहा गर यूँ ही अगर
मातम के दरवाज़े पीढ़ी दर पीढ़ी खुल जायेंगे.
- दिनेश
शुभ…
Added by dinesh solanki on June 13, 2013 at 6:10am — 8 Comments
प्रिय मित्रों,
हिंदी में आम पाठकों के लिए क्लिष्ट भाषा का उपयोग नहीं होना चाहिए, ऐसा मेरा मानना है. हिंदी निश्चित ही अपार शब्दों का समंदर है जिसमे सरल से लेकर कठिन, उच्च और बौद्धिक शब्दों की भरमार है. साहित्यकारों, हिंदी प्रेमियों, हिंदी विषय के ज्ञाताओं और हिंदी का ज्ञानार्जन करने वालों के सन्मुख क्लिष्ट भाषा का उपयोग समझ आता है मगर जब आम पाठकों, श्रोताओं, दर्शकों की बात सामने आती है तब कवि को, लेखक को, नेता को, साहित्यकार को, मीडिया को या कोई भी रचनाकार को आम जनता की मनोस्थिति,…
ContinueAdded by dinesh solanki on May 31, 2013 at 7:51am — 7 Comments
तब होके रहेगा गोल...!
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पूछा मैंने नन्ही शहरी चिड़िया से
तपती धरती पर तुम क्यों
इस तरह उतर आई .....!
आकाश की ओ स्वछन्द परी,
स्वार्थी इंसानों की दुनिया में
नाहक ही मरने को आयी?
बोली बेचारी मायूस होकर
जहाँ जहाँ था हमारा बसेरा
वहां वहां कट गये वृक्ष के आशियाने
तन गए इंसानों के गगनचुम्बी महल
ये देख हमारी बिरादरी के दिल गए दहल.
अब न मिलती छाँव है
न हवा, न मिलता कहीं जल है.
मैं सोच रही…
Added by dinesh solanki on May 30, 2013 at 8:30am — 11 Comments
चले चलो, बढे चलो...
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बढे चलो, बढे चलो
हिन्द के ओ सुरमाओ
बढे चलो, बढे चलो
सीमाओं की तुम ढाल हो,
रणभूमि की तुम नाल हो,
देश के द्वारपाल हो
माँ के तुम लाडले,
वतन के तुम कर्णधार हो,
बढे चलो बढे चलो
दुश्मन तुम्हे निहार रहा
ताक़त को है ललकार रहा
लहू को अपने उबाल के
जान अपनी वार के
धरती पर उसको मार के
बढे चलो बढे चलो.
-दिनेश सोलंकी
-फोटो महू छावनी के माल रोड का, छाया: दिनेश…
ContinueAdded by dinesh solanki on May 23, 2013 at 7:00am — 6 Comments
कॉंग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट की उस टिपण्णी पर ऐतराज़ जताया है की सी बी आई को 'तोता' क्यों कहा? यहाँ दिग्गी राजा का कहना सही लगता है की सुप्रीम कोर्ट को टिपण्णी करने के बजाय फैसला देकर जवाबदेही तय करना चाहिए. दरअसल पिछले कुछ समय से आम जनता भी महसूस कर रही है की कोर्ट की सरकारों को दी जाने वाली बार-बार लताड़ का नतीजा आखिर क्या निकलता है. इससे तो आम सन्देश ये भी जा रहा है की कोर्ट द्वारा सख्त टिप्पणियों को करने के बाद भी देश में भ्रष्टाचार, जघन्य अपराधों में कोई कमी नहीं आ…
ContinueAdded by dinesh solanki on May 14, 2013 at 7:10am — 2 Comments
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