बहर= "रमल मुसम्मन महजूफ"
2122 2122 2122 212
गर दिलों का दर्द उतरे शायेरी बन जाये ये
भूल ना चाहें अगर आवारगी बन जाये ये
मत समझना तुम मुहब्बत खेलने की चीज़ है
दिल्लगी करते हुये दिलकी लगी बन जाये ये
हम समझते ही रहें खुद को शनासा दोस्तों
मार कर हमको हमारी ज़िन्दगी बन जाये ये
दर्द ही मिलते रहें ऐसा नहीं होता अगर
चाह जिसकी वो मिले तो हर ख़ुशी बन जाये ये
तुम न करना इस क़दर बिस्मिल मुहब्बत…
ContinueAdded by Ayub Khan "BismiL" on August 10, 2013 at 9:00pm — 9 Comments
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