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ख़म नहीं ज़ुल्फ़ों के ये जिनको कि सुलझायेंगे आप
उलझने हैं इश्क़ की फिर से उलझ जायेंगे आप
कौन कहता है मुहब्बत अक्स है तन्हाइयों का
हम न होंगे साथ जब साये से घबराएंगे आप
दे तो दोगे इस ज़माने के सवालो का जवाब
दिल नहीं सुनता किसी की कैसे समझायेंगे आप
जा रहे हो बे-रुखी से जान लो इतना ज़रूर
क़द्र जब होगी मुहब्बत कि बड़ा पछतायेंगे आप
जब कभी होगा यक़ीं बिस्मिल वफाओं का जनाब
देखना फिर खुद-ब-खुद ही लौटकर आयेंगे आप
ख़म=घुमाव
**((अय्यूब खान "बिस्मिल"))**
*मौलिक और अप्रकाशित
Comment
shukria Dr Ashutosh sahab apki zarranawazi ke liye .............. Is Gazal Me Radeef Aap Hai Aayenge Nahi , AuR Qafiya Hai AAYEN{GE} , JAYEN{GE} , PACHTAYEN{GE} ...............matlab Harf-e-ravi ke taur pe GE istemaal ho raha hai
बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई ..अपनी जानकारी के लिए जानना चाहता हों ..अपने इसमें आयेंगे को बतौर रदीफ़ चुना है तो अंतिम शेर में काफिया क्या है ..मैं आपकी ग़ज़ल में काफिये के बारे में जानना चाह रहा हूँ ..मुझे समझने में असुबिधा हो रही है ..आप थोडा स्पष्ट करेंगे तो मेरी भ्रान्ति का निवारण होगा ..सादर
आदरणीय बिस्मिल साहिब बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई आपको
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब y Abhinav Arun sB. ,डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव sb. शिज्जु शकूर sahab
क्या कहने वाह ..खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बिस्मिल जी को हार्दिक बधाई !!
बिस्मिल जी
आपने तो भाई लाजवाब कर दिया i शुरू से ही छा गए भाई i
मुबारक हो i
आदरणीय अय्यूब भाई, सुन्दर गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ !!!!
आदरणीय - क़द्र जब होगी मुहब्बत कि बड़ा पछतायेंगे आप - इस मिसरे की तक्तीअ फिर से करके देख लें !!!!!
भाई अय्यूब जी अच्छी ग़ज़ल है दाद कुबूल फरमायें
bahut shukria Meena Pathak Sahiba
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