बहर= "रमल मुसम्मन महजूफ"
2122 2122 2122 212
गर दिलों का दर्द उतरे शायेरी बन जाये ये
भूल ना चाहें अगर आवारगी बन जाये ये
मत समझना तुम मुहब्बत खेलने की चीज़ है
दिल्लगी करते हुये दिलकी लगी बन जाये ये
हम समझते ही रहें खुद को शनासा दोस्तों
मार कर हमको हमारी ज़िन्दगी बन जाये ये
दर्द ही मिलते रहें ऐसा नहीं होता अगर
चाह जिसकी वो मिले तो हर ख़ुशी बन जाये ये
तुम न करना इस क़दर बिस्मिल मुहब्बत टूटकर
सब हदों को तोड़ कर के बन्दगी बन जाये ये
"मौलिक व अप्रकाशित"
**( अय्यूब खान "बिस्मिल")**
यहीं से सीख कर पहली मर्तबा बहर में कहने की
कोशिश की है दोस्तों इस्लाह का मुन्तजिर हूँ
Comment
तुम न करना इस क़दर बिस्मिल मुहब्बत टूटकर
सब हदों को तोड़ कर के बन्दगी बन जाये ये.............बहुत खूब !
सुन्दर गज़ल हुई है आ० अयूब खान जी
हार्दिक बधाई
इस शुरुआत के लिए दिल से बधाइयाँ, बिस्मिल साहब. आपने दिल रख लिया .. .
दाद कुबूल करें
शुभ-शुभ
//गर दिलों का दर्द उतरे शायेरी बन जाये ये
भूल ना चाहें अगर आवारगी बन जाये ये//
वाह बिस्मिल साहब आप वाकई बिस्मिल लगते हैं इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिये दिली दाद कुबूल फरमायें
Venus Kesri sahab MamnooN Hu Aapki Mohabbat Ke Liye Jazbbat To Pehle Bhi Alfaaz Me Utaar Diya Karta Tha Magar Sahi Maayene Me Shayeri Apki Islaah Se He Sekhna Shuru Kiay Hai Maine ,, Is Lihaaz Se Aap Mere Gaybana Ustaad Huye ..................... Isi Mohabbat OR Islaah Ka Talib Rahunga Aapse ....SadaR
Janaab Viveek Mishr sahab , Giriraj sahab Neeraj sahab bahut bahut shukria is qadar honsla afzaai ke liye
वाह बिस्मिल जी ...
क्या शानदार शुरुआत हुई है ... अब तो यही कहना पड़ना है खुद से कि ...
आगे आगे देखिए होता है क्या
ढेरों दाद क़ुबूल फरमाएँ
वाह !! बिस्मिल भाई वाह !!
तुम न करना इस क़दर बिस्मिल मुहब्बत टूटकर
सब हदों को तोड़ कर के बन्दगी बन जाये ये
हम समझते ही रहें खुद को शनासा दोस्तों
मार कर हमको हमारी ज़िन्दगी बन जाये ये |
तुम न करना इस क़दर बिस्मिल मुहब्बत टूटकर
सब हदों को तोड़ कर के बन्दगी बन जाये ये |
बिस्मिल साहब बहुत ही खूबसूरत और
खासकर ये शेर तो बहुत लाजवाब हैं ।
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