सबसे ज्यादा ज़िन्दगी
तुझसे ही धोखे खाए हैं
जब किया विश्वास तब
तूने कहर बरपाए हैं
सबसे - -
दीप आशा का लिए
जब - जब उमंगित मैं खड़ी
द्वार जो नैराश्य के
आकर सतत खटकाए हैं
सबसे - -
मत समझना तू हरा देगी
मुझे ऐ ज़िन्दगी
हमने ही तो कूट प्रश्नों के
गिरह सुलझाए हैं
सबसे - -
परत दर परतों के पीछे
कितना ही छुपती फिरे
पर तेरे झूठे मुखौटे
हमने ही विलगाए हैं
सबसे - -
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on August 28, 2019 at 9:51pm — 1 Comment
तुम हुए जो व्यस्त
अभिभावक कहें किससे व्यथा?
हो गए कितने अकेले
क्या तुम्हे यह भी पता?
जिन्दगी की राह में
तुम तो निकल आगे गए
वे गहन अवसाद, द्वन्दों
में उलझ कर रह गए
सहन कर पाए न वे
संतान की ये बेरुखी
बेसहारा , ढलती वय
थक कर, हताशा में फंसी
तुम उन्हे कुछ वक्त दो
प्यार दो , संतृप्ति दो
जिन्दगी जीने को कुछ
आधार कण रससिक्त दो
पुष्प फिर आशीष के
तुम पर बरस ही जाएंगे
कवच बन संसार…
Added by Usha Awasthi on August 22, 2019 at 9:50pm — 5 Comments
उद्मम करते जो सदा
कर्मनिष्ठ , मतिधीर
वे सम्पन्न समाज की
रखते नींव , प्रवीर
श्रमेव जयते में सदा
जिनका है विश्वास
उनके ही श्रम विन्दु से
ले वसुन्धरा श्वास
मेहनत भी एक साधना
नहीं कोई यह भोग
लक्ष्य केन्द्रित वृत्ति ही
बन जाए फिर योग
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on August 6, 2019 at 7:00pm — 3 Comments
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