मित्रों के अवलोकनार्थ एवं अभिमत के लिए प्रस्तुत एक ताज़ा नवगीत
"मौलिक व अप्रकाशित" -जगदीश पंकज
थपथपाये हैं हवा ने द्वार मेरे
क्या किसी बदलाव के
संकेत हैं ये
फुसफुसाहट,
खिड़कियों के कान में भी
क्या कोई षड़यंत्र
पलता जा रहा है
या हमारी
शुद्ध निजता के हनन को
फिर नियोजित तंत्र
ढलता जा रहा है
मैं चकित गुमसुम गगन की बेबसी से
क्या किसी ठहराव के …
Added by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on August 7, 2015 at 5:30pm — 9 Comments
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