For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

धूमिल सपने हुए हमारे

धूमिल सपने हुए हमारे
रंगहीन सी
प्रत्याशाएँ
सोये-जागे सन्दर्भों की
फैली हैं
मन पर शाखाएँ

 

शंकायें तो रक्तबीज सी
समाधान पर भी
संशय है
अपने पैरों की आहट में
छिपा हुआ अन्जाना
भय है

 

किस-किसका अभिनन्दन कर लें
किस-किसका हम
शोक मनाएँ

 

सांस-सांस में दर्प निहित है
कुछ होने कुछ
अनहोने का
कुछ पाने की उग्र लालसा
लेकिन भय
सब कुछ खोने का
 
अनगिन संवत्सर बीते हैं
चुकी न कल्पित
जिज्ञासाएँ।

 
----जगदीश पंकज

मौलिक ,तथा अप्रकाशित

Views: 481

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on February 15, 2015 at 10:49pm

,रचना पसन्द करने तथा अभिमत प्रकट करने पर हृदयतल से आभार गिरिराज भंडारी जी ,  Saurabh Pandey जी  -जगदीश पंकज


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 15, 2015 at 10:26pm

समाज का सुख या दुख वैयक्तिक नहीं होता. इसकी अनुभूति सामुहिक होती है. परन्तु, समाज का वर्ग विभाजन जिस ढंग से हुआ है वह वर्गों को परस्पर असंपृक्त हो जाने का कारण बन कर व्याप गया है. ऐसे में हेय मान लिये गयों तथा वंचितों के दर्द और उनकी सुप्त होती उम्मीदों को जिस तरह से आपने शब्द दिये हैं आदरणीय जगदीश प्रसादजी यह श्लाघनीय है. विशेषकर पहला बन्द विन्दुवत है.
आपके इस नवगीत के लिए हार्दिक बधाइयाँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 15, 2015 at 9:06pm

बहुत खूब सूरत रचना हुई है , आदरणीय जगदीश भाई , सभी की मानसिक स्थितियों को बयान करती लगी । हार्दिक बधाई

Comment by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on February 14, 2015 at 5:47pm

मिथिलेश वामनकर जी, Dr. Vijai Shanker जी, Shyam Narain Verma जी, डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , ajay sharma जी  Hari Prakash Dubey जी ,रचना पसन्द करने तथा अभिमत प्रकट करने पर हृदयतल से आभार -जगदीश पंकज

Comment by Hari Prakash Dubey on February 14, 2015 at 9:11am

आदरणीय जगदीश पंकज जी , //शंकायें तो रक्तबीज सी 
समाधान पर भी 
संशय है
अपने पैरों की आहट में 
छिपा हुआ अन्जाना 
भय है// सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई सादर !

Comment by ajay sharma on February 13, 2015 at 10:29pm

kal kal bahti ,,,,jagmagate bimbo se saji is rachna ke liye .......adarniya .....bahut bahut shukriya 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 13, 2015 at 2:44pm

AADARNEEY

ATI  SUNDAR   I

Comment by Shyam Narain Verma on February 13, 2015 at 11:09am
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई 
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 13, 2015 at 6:30am
कुछ होने कुछ
अनहोने का
कुछ पाने की उग्र लालसा
लेकिन भय
सब कुछ खोने का॥
बहुत दिन बाद, पर बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति , यथार्थ है, इच्छाओं का अंत नहीं , पर वही जीवन है, आदरणीय जगदीश प्रसाद जेंद पंकज जी , बहुत बहुत बधाई इस रचना पर, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 9:36pm
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। इच्छाओं की कोई सीमा नहीं। हार्दिक बधाई स्वीकारें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service