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धूमिल सपने हुए हमारे

धूमिल सपने हुए हमारे
रंगहीन सी
प्रत्याशाएँ
सोये-जागे सन्दर्भों की
फैली हैं
मन पर शाखाएँ

 

शंकायें तो रक्तबीज सी
समाधान पर भी
संशय है
अपने पैरों की आहट में
छिपा हुआ अन्जाना
भय है

 

किस-किसका अभिनन्दन कर लें
किस-किसका हम
शोक मनाएँ

 

सांस-सांस में दर्प निहित है
कुछ होने कुछ
अनहोने का
कुछ पाने की उग्र लालसा
लेकिन भय
सब कुछ खोने का
 
अनगिन संवत्सर बीते हैं
चुकी न कल्पित
जिज्ञासाएँ।

 
----जगदीश पंकज

मौलिक ,तथा अप्रकाशित

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Comment by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on February 15, 2015 at 10:49pm

,रचना पसन्द करने तथा अभिमत प्रकट करने पर हृदयतल से आभार गिरिराज भंडारी जी ,  Saurabh Pandey जी  -जगदीश पंकज


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 15, 2015 at 10:26pm

समाज का सुख या दुख वैयक्तिक नहीं होता. इसकी अनुभूति सामुहिक होती है. परन्तु, समाज का वर्ग विभाजन जिस ढंग से हुआ है वह वर्गों को परस्पर असंपृक्त हो जाने का कारण बन कर व्याप गया है. ऐसे में हेय मान लिये गयों तथा वंचितों के दर्द और उनकी सुप्त होती उम्मीदों को जिस तरह से आपने शब्द दिये हैं आदरणीय जगदीश प्रसादजी यह श्लाघनीय है. विशेषकर पहला बन्द विन्दुवत है.
आपके इस नवगीत के लिए हार्दिक बधाइयाँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 15, 2015 at 9:06pm

बहुत खूब सूरत रचना हुई है , आदरणीय जगदीश भाई , सभी की मानसिक स्थितियों को बयान करती लगी । हार्दिक बधाई

Comment by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on February 14, 2015 at 5:47pm

मिथिलेश वामनकर जी, Dr. Vijai Shanker जी, Shyam Narain Verma जी, डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , ajay sharma जी  Hari Prakash Dubey जी ,रचना पसन्द करने तथा अभिमत प्रकट करने पर हृदयतल से आभार -जगदीश पंकज

Comment by Hari Prakash Dubey on February 14, 2015 at 9:11am

आदरणीय जगदीश पंकज जी , //शंकायें तो रक्तबीज सी 
समाधान पर भी 
संशय है
अपने पैरों की आहट में 
छिपा हुआ अन्जाना 
भय है// सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई सादर !

Comment by ajay sharma on February 13, 2015 at 10:29pm

kal kal bahti ,,,,jagmagate bimbo se saji is rachna ke liye .......adarniya .....bahut bahut shukriya 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 13, 2015 at 2:44pm

AADARNEEY

ATI  SUNDAR   I

Comment by Shyam Narain Verma on February 13, 2015 at 11:09am
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई 
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 13, 2015 at 6:30am
कुछ होने कुछ
अनहोने का
कुछ पाने की उग्र लालसा
लेकिन भय
सब कुछ खोने का॥
बहुत दिन बाद, पर बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति , यथार्थ है, इच्छाओं का अंत नहीं , पर वही जीवन है, आदरणीय जगदीश प्रसाद जेंद पंकज जी , बहुत बहुत बधाई इस रचना पर, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 9:36pm
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। इच्छाओं की कोई सीमा नहीं। हार्दिक बधाई स्वीकारें।

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