For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक नया नवगीत -जगदीश पंकज

एक नया नवगीत -जगदीश पंकज

नोंच कर पंख, फिर 

नभ में उछाला
जोर से जिसको
परिंदा तैर पायेगा
हवा में
किस तरह से अब

बिछाकर जाल
फैलाकर कहीं पर
लोभ के दाने
शिकारी हैं खड़े
हर ओर अपनी
दृष्टियाँ ताने

पकड़कर कैद
पिंजरे में किया
फिर भी कहा गाओ
क्रूर अहसास ही
छलता रहा है
हर सतह से अब

कांपते पैर जब
अपने, करें विश्वास
फिर किस पर
छलावों से घिरे
हैं हम ,छिपा है
आहटों में डर


तुम्हारे
अट्टहासों में
हमारे घाव की पीड़ा
कभी प्रतिकार भी लेगी
निकल अपनी
जगह से अब

सुना है उम्र
ज़ालिम की कभी
ज्यादा नहीं होती
सचाई को दबाने से
नहीं पहचान
वह खोती

समन्दर-न्याय
यह कैसा
हमारी सभ्यता कैसी
विसंगतियां मिटाने को
चलें, अगली
सुबह से अब

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

-जगदीश पंकज

Views: 405

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on May 2, 2014 at 2:12pm

मैं समूह का अभी सदस्य बना हूँ और अपनी रचना पोस्ट की। समूह में मेरी प्रथम रचना पर आई प्रतिक्रिया और सुझावों से अभिभूत हूँ कि समूह के सदस्य किसी रचना को इतनी गंभीरता से लेकर टिप्पणी करते हैं। सभी का ह्रदय से आभारी हूँ और सुझावों के अनुसार रचना पर पुनर्विचार करके संशोधन का प्रयास करूंगा। -जगदीश पंकज


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 2, 2014 at 9:16am

सुप्रवाहित सुन्दर कविता प्रस्तुत हुई है आ० जगदीश जी 

पंछी की विवशता के इंगित से काफी गहन बातें कहने का सार्थक प्रयास हुआ है ...बहुत बहुत बधाई 

किन्तु नवगीत के मानकों पर यह रचना शिल्प तुष्ट नहीं करती.. मंच पर प्रस्तुत अन्य नवगीत अवश्य ही देखिये  

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2014 at 3:03am

आदरणीय जगदीश जी, इस मंच पर आपकी पहली रचना प्रस्तुत हुई है. आपका सादर स्वागत है.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 26, 2014 at 3:40pm

आदरणीय जगदीश जी ..नवगीत के बिषय में जानकारी नहीं है ..लेकिन गेयता के दृष्टी से बाधित लग रहा है ..कहीं कुछ कमी सी लग रही है ..एक पाठक की हैसियत से ही कह रहा हूँ ..हो सकता है मैं समझ्न पा रहा हूँ ..आपकी इस रचना को बधाई के साथ सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 25, 2014 at 6:11pm

आदरणीय जगदीश भाई , नवगीत शिल्प के विषय मे मै नही जानता , मन मे  आशा जगाती  रचना के लिये बधाइयाँ ॥

Comment by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on April 25, 2014 at 4:16pm

सुझाव के लिए धन्यवाद coontee mukerji जी -जगदीश पंकज 

Comment by coontee mukerji on April 25, 2014 at 4:07pm

जगदीश पंकज जी आपकी रचना में भाव विन्यास तो ठीक है लेकिन इस में और भी लालित्य की ज़रूरत है......सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service