पावस के कुछ दोहे-
तुम तक ले आईं हमें,पकड़ पकड़ कर हाथ
सुधियाँ तो चलतीं गयीं, पुरवाई के साथ.
मैं हूँ तट का बांसवन,तू नादिया की धार
तूफ़ानों ने कर दिए,मिलने के आसार.
सुधियों के उपवन खिले,उस पर बरसा मेह
फागुन फागुन…
Added by राजेश शर्मा on August 1, 2013 at 9:00pm — 16 Comments
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