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आख़िरी सोपान तक ,पहुंचे नहीं हैं हम अभी.

 कुछ चले हैं ,कुछ बढ़े हैं, कुछ चढ़े हैं हाँ मगर,

 आख़िरी सोपान तक ,पहुंचे नहीं हैं हम अभी.

 बांटते हैं रोज लाखों लाख खुशियाँ , हाँ मगर,

 आख़िरी इन्सान तक पहुंचे नहीं हैं हम अभी.

 

 कौन समझाए हमें, ये है हमारी त्रासदी,

 जागने भर में, अभी तक खर्च दी

 आधी सदी, योजनायें हैं ,बड़ी परियोजनाएं, हाँ मगर,

 बस सही अनुमान तक पहुंचे नहीं हैं हम अभी.

 

 श्वेत हो हा हरित हो, ये क्रांति भी तो क्रांति है.

 पर दिलों में आज भी कुछ रूढ़ियों की भ्रान्ति है,

 सौ सुयोजन हें,प्रयोजन हें, नियोजन ,हाँ मगर,

 एक ही संतान तक पहुंचे नहीं हैं , हम अभी.

 

 भावनाएं हैं बहुत, गौरव कथाएँ याद हैं,

 पर न जाने भीड़ में ये कौन सा उन्माद है,

 प्रार्थनाएँ हें,अजानें, आरतीं हें, हाँ मगर,

 देश के यश गान तक,पहुंचे नहीं हैं हम अभी. 

 

 स्वर्ण-चिड़िया की कभी,क्या आन थी क्या शान थी,

 विश्व में सबसे अलग ,सबसे बड़ी पहचान थी,

 ज्ञात हें, विज्ञात हें, विख्यात भी हें, हाँ मगर,

 फिर उसी सम्मान तक, पहुंचे नहीं हें हम अभी.

 

 ये हमारे देश के निर्माण का मजमून है,

 कुछ पसीना भी हमारा है, हमारा खून है,

 खूब श्रम है, और उपक्रम है पराक्रम ,हाँ मगर,

 क्यों स्वयं जी-जान तक, पहुंचे नहीं हें हम अभी.

 

                         **********

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Comment

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Comment by आशीष यादव on August 24, 2011 at 6:37pm

bahut sundar geet. bahut sundar bhaw bhi hai.

naman hai mera.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 22, 2011 at 10:49am

राजेश शर्मा जी कुछ दिनों के ब्रेक के बाद आपको पढना सुखकर है, बहुत ही खुबसूरत गीत प्रस्तुत किया है आपने, दिल में उमड़ घुमड़ रहे जज्बातों को आपने बहुत ही मार्मिक तरीके से अभिव्यक्त किया है, बहुत बहुत बधाई आपको |

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