सुनो, नारी कभी नग्न नहीं होती है
और सुनो, नारी कभी नहीं रोती है
नारी कभी नग्न नहीं होती
नग्न होती हैं ;
हमारी मातायें,
हमारी बहनें,
हमारी पत्नी,
हमारी बेटियां,
हमारी पुत्र-वधुयें,
हमारी विवशताएं
नारी कभी नहीं रोती है-
रोती हैं ;
हमारी मातायें,
हमारी बहनें,
हमारी पत्नी,
हमारी बेटियां,
हमारी पुत्र-वधुयें,
हमारी विवशताएं
फिर…
Added by SudhenduOjha on August 24, 2018 at 6:30pm — 9 Comments
वो बेबसी का
कहर देखते हैं
हम भी अपना
शहर देखते हैं
उतर गया है
पानी सैलाब का
मिट्टी से सना
घर देखते हैं
शर्म, हया, अना
कहाँ बची है
झुक के सभी
दीवारो-दर देखते हैं
घोल दी गई कुछ
इस तरह मिठास
ज़ुबाँ में ज़हर का
असर देखते हैं
इस उम्र न आओगे
लौट कर यहाँ
हम न जाने किसकी
डगर देखते हैं
मौलिक एवम अप्रकाशित
सुधेन्दु ओझा
Added by SudhenduOjha on August 24, 2018 at 12:20pm — 1 Comment
कैसे-कैसे सवालों का जवाब है जिंदगी
कांटों के साथ-साथ गुलाब है जिंदगी
तुम समझ सके न जिसे हम समझ सके
ऐसे मसाएलों का अजाब (दुख/संत्रास) है जिंदगी
शज़र (वृक्ष) की ओट में चांद ठहर गया है
चांदनी कह रही है, माहताब है जिंदगी
मेरे औ चांद के जो दरम्यान था
शज़र का हल्का सा नक़ाब है जिंदगी
तेरी मुस्कुराहटों, रुसवाईयों से अलग
भूख और गुरबतों का असबाब है जिंदगी
तू रहे कहीं, मुझ से जुदा रह नहीं…
ContinueAdded by SudhenduOjha on August 13, 2018 at 10:30am — 3 Comments
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