सुनो, नारी कभी नग्न नहीं होती है
और सुनो, नारी कभी नहीं रोती है
नारी कभी नग्न नहीं होती
नग्न होती हैं ;
हमारी मातायें,
हमारी बहनें,
हमारी पत्नी,
हमारी बेटियां,
हमारी पुत्र-वधुयें,
हमारी विवशताएं
नारी कभी नहीं रोती है-
रोती हैं ;
हमारी मातायें,
हमारी बहनें,
हमारी पत्नी,
हमारी बेटियां,
हमारी पुत्र-वधुयें,
हमारी विवशताएं
फिर न कहना कभी ;
अमुक स्त्री को नग्न किया गया,
कहना ;
हमारी माता को नग्न किया गया
हमारी बहन को नग्न किया गया
हमारी पत्नी को नग्न किया गया
हमारी बेटी को नग्न किया गया
हमारी पुत्र-वधु को नग्न किया गया
हमारी विवशता को नग्न किया गया
फिर न कहना कभी;
अमुक स्त्री रोती थी,
कहना ;
हमारी माता रो रही थी
हमारी बहन रो रही थी
हमारी पत्नी रो रही थी
हमारी बेटी रो रही थी
हमारी पुत्र-वधु रो रही थी
हमारी विवशता रो रही थी
क्योंकि इतिहास गवाह है,
सारे ज़ुल्म स्त्रियों पर ही टूटे हैं
फिर भी
सुनो, नारी कभी नग्न नहीं होती है
और सुनो, नारी कभी नहीं रोती है
नारी, अकेली नारी नहीं होती है
माँ, बहन, पत्नी, बेटी, पुत्र-वधु होती है
सुनो, नारी कभी नग्न नहीं होती है
और सुनो, नारी कभी नहीं रोती है
मौलिक, अप्रकाशित
सादर,
सुधेन्दु ओझा
Comment
// उपरोक्त के विषय में यह कहना है कि यदि ऐसा सम्बोधन अनिवार्य है तो इसकी सूचना साइट पर फ्लैश की जाय।
हिन्दी में यदि आप नाम के साथ "जी" का प्रयोग करते हैं तो स्वतः आदरणीय हो जाता है, उसमें आयु भेद न रह कर वह वरिष्ठ एवं सम्मानित माना जाता है //
आदरणीय सुधेन्दु जी, आप प्रस्तुत मंच पर अपेक्षाकृत नए सदस्य हैं. इस कारण, आपकी हर तरह की शंकाओं का समाधान आवश्यक है.
हालाँकि, आपका निवेदन हर तरह से समीचीन है, किन्तु, आदरणीय समर भाईसाहब ने सही फ़रमाया है कि सम्बोधनों के क्रम में पटल पर यथायोग्य आदरणीय या आदरणीया या जनाब या मोहतरमा कहने की परिपाटी है. अपने अनुजों को भाई कहकर सम्बोधित करने का चलन है.
ऐसी परिपाटियाँ अथवा ऐसे चलन एक दिन में अथवा अनायास ही नहीं बन जाया करते, बल्कि इन्हें सभी सदस्यों के द्वारा तिल-तिल कर निभाना पड़ता है.
ओबीओ के पटल के आज आठ वर्ष हो चुके हैं. इस पटल के प्रारम्भिक दिनों में ही प्रधान संपादक महोदय की पहल पर तथा प्रबन्धन के सदस्यों की अनुशंसाओं पर इस आशय को स्वीकार कर लिया गया था, कि आदरणीय और आदरणीया का प्रयोग अपरिहार्य कर दिया जाय. आगे, सभी सदस्यों ने इस परिपाटी को व्यावहारिक आचरण की तरह निभाना शुरु कर दिया.
आदरणीय, सारी बातें लिखित नहीं होतीं. होनी भी नहीं चाहिए. बल्कि, अकाट्य, अपरिहार्य एवं परिपक्व हो चुकी परम्पराएँ सहज ही स्वीकार्य होनी चाहिए. जिनका अनुपालन उक्त संस्था अथवा मंच अथवा पटल के सदस्य निःसंशय करते रहें. ऐसी ही ठोस परम्पराओं के कारण कोई मंच या पटल विशिष्ट हो जाया करता है.
आप जैसे संवेदनशील एवं सुधी सदस्य से भी हम सभी को यदि आपसी व्यवहार में स्वीकृत हो चुकी परिपाटियों के अनुपालन की अपेक्षा है, तो यह कोई अचरज नहीं है.
आपके सहयोग की अपेक्षाओं के साथ आपका आभार
सादर
आदरणीय सुधेन्दु ओझा जी, आपकी प्रस्तुत कविता की संवेदनशीलता बिन्दुवत एवंं प्रहारक है। इसके लिए आप अवश्य ही बधाई के पात्र हैं। आपकी रचना का कथ्य आवृतिजन्य होने से उक्ति विशिष्टता का प्रभाव समीचीन बन पड़ा है। हार्दिक शुभकामनाएँ..
शुभातिशुभ
//शेख शहज़ाद उस्मानी जी//
इस तरह का सम्बोधन ओबीओ की परिपाटी नहीं है, यहाँ बड़े छोटे सबको आदरणीय कहकर या मुहतरम जनाब,कहकर संबोधित किया जाता है ।
उपरोक्त के विषय में यह कहना है कि यदि ऐसा सम्बोधन अनिवार्य है तो इसकी सूचना साइट पर फ्लैश की जाय।
हिन्दी में यदि आप नाम के साथ "जी" का प्रयोग करते हैं तो स्वतः आदरणीय हो जाता है, उसमें आयु भेद न रह कर वह वरिष्ठ एवं सम्मानित माना जाता है।
मैं शेख शहजाद उस्मानी जी का सम्मान करता हूँ। यह प्रयत्न मंच से न किया जाय कि मैंने किसी भिज्ञ/अलिखित परिपाटी की अवहेलना कर के उनके सम्मान को कम करने का प्रयत्न किया है।
जनाब सुधेन्दु ओझा जी आदाब,अच्छी कविता है, बधाई स्वीकार करें ।
जनाब सुधेन्दु ओझा जी आदाब,
//शेख शहज़ाद उस्मानी जी//
इस तरह का सम्बोधन ओबीओ की परिपाटी नहीं है, यहाँ बड़े छोटे सबको आदरणीय कहकर या मुहतरम जनाब,कहकर संबोधित किया जाता है ।
भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई ।
आदरणीय सुधेन्दु ओझा जी बहुत बेहतरीन रचना के लिए बधाई
शेख शहज़ाद उस्मानी जी कविता का संज्ञान लेने हेतु धन्यवाद।
इस कविता को छंद में पिरोने के सुझाव से स्पष्ट होता है कि आप ने इसे गंभीरतापूर्वक लिया है। धन्यवाद।
दरअसल, इस गद्य कविता में पुनरूक्ति की भरमार आप पाएंगे। इस में भाव हावी है।
गद्य में एक ही बात को बारबार कहने से विषय को बल मिलता है उसमें खूबसूरती पैदा की जासकती है।
पद्य में पुनरूक्ति शायद बड़ा दोष बन जाये।
तथापि आपका सुझाव उचित है।
आप बताएं इस पर किस तरह आगे बढ़ा जा सकता है?
सादर,
सुधेन्दु ओझा
बेहतरीन कटाक्ष और समसामयिक विचारोत्तेजक रचना। हार्दिक बधाइयां जनाब सुधेन्दु ओझा साहिब। इसे किसी काव्य छंद में पिरोकर बेहतर रूप देने की भी कोशिश की जा सकती है।
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