चाह जीने की अगर, तुझमें पनपती है प्रबल,
रास्ता रोकेगा कैसे, फिर तुम्हारा दावानल ।
चाहे जितनी मुश्किलें, आयें तुम्हारे सामने,
तुम कभी करना नहीं, अपनों नयनों को सज़ल ।
जिंदगी के रास्ते, इतने सरल होते नहीं,
तुझको भी पीना पड़ेगा,अपने हिस्से का गरल ।
तू अगर सच्चा है तो फिर, डर तुझे किस बात का,
मंजिलों की जुस्तज़ू में, हौसले लेकर निकल ।
कर नहीं पायेगी तुझको, कोई भी मुश्किल विकल,
गर इरादे होंगे तेरे, आसमां…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 31, 2018 at 5:30pm — 2 Comments
जीवन की धमाचौकड़ी में वो अस्त-व्यस्त था।
मिलता तो था सभी से मगर ज़्यादा व्यस्त था।।
हर चंद कोशिशें थीं कि दीदार-ए-यार हो।
पहरा मगर महल में बहुत ज़्यादा सख्त था।।
कहने को गर हैं भाई फिर मैदान-ए-जंग में।
गिरता था ज़मीन पे वो फिर किसका रक्त था।।
गर सब हैं बेगुनाह तो चल अब तू ही दे बता।
खंज़र मेरे शरीर में वो किसका पेवस्त था।।
जिससे भी जुड़ा रिश्ते में वो बंधता चला गया।
बस उसका ही मिजाज थोड़ा ज़्यादा…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 24, 2018 at 3:00pm — 1 Comment
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