For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शाम को जिस वक़्त खाली हाथ घर जाता हूँ मैं

अपने बच्चों की निगाहों से उतर जाता हूँ मैं
भूख से हूँ बेहाल इतना के चला जाता नहीं
जाना चाह्ता हूँ उधर जाने किधर जाता हूँ मैं
एक ठीया है शहर में हम सब जहाँ होते जमा
ख़ुद को लेकिन रोज़ तन्हा उस डगर पाता हूँ मैं
जो मेरी है वो ही अब हालत शहर की हो रही
आइने में ख़ुद की सूरत देख डर जाता हूँ मैं
आब और सहरा में आँखें फ़र्क़ कर पाती नहीं
रेत के दरिया को भी अब तैरकर जाता हूँ मैं
कितना मुश्किल है जीना सोचकर देखो कभी
इसलिए थोड़ा सा जीता और मर जाता हूँ मैं
अब सहा जाता नहीं ज़ुल्मो-सितम मुझसे ‘प्रदीप’
दो इजाज़त ज़ालिमों का काट सर लाता हूँ मैं
-प्रदीप देवीशरण भट्ट- मौलिक व अप्रकाशित

Views: 502

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on September 5, 2019 at 6:06pm

कृपया व्हाट्सऐप की बजाए फ़ोन पर सम्पर्क किया करें ।

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on September 5, 2019 at 4:08pm

अच्छा सुझाव  देने के लिए शुक्रिया समर जी, 

मैंने आपके व्हट्सप पर इस्लाह के लिए एक रचना भेजी थी। अभी भी प्रतिक्षारत्त हूँ

Comment by Samar kabeer on September 1, 2019 at 2:44pm

जनाब प्रदीप देवीशरण भट्ट जी आदाब,एक बात ये कि रचना के साथ उसकी विधा भी लिख दिया करें ।

ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'भूख से हूँ बेहाल इतना के चला जाता नहीं
जाना चाह्ता हूँ उधर जाने किधर जाता हूँ मैं'
ये शैर बह्र में नहीं है,यूँ कर सकते हैं:-
'भूख से बेहाल हूँ इतना चला जाता नहीं
ख़ुद पता मुझको नहीं जाने किधर जाता हूँ मैं'
'एक ठीया है शहर में हम सब जहाँ होते जमा
ख़ुद को लेकिन रोज़ तन्हा उस डगर पाता हूँ मैं'
इस शैर में क़ाफ़िया बदल गया है,देखें ।
'जो मेरी है वो ही अब हालत शहर की हो रही
आइने में ख़ुद की सूरत देख डर जाता हूँ मैं'
इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त(ताल मेल) नहीं है,देखें ।
'कितना मुश्किल है जीना सोचकर देखो कभी'
इस मिसरे को यूँ कर लें तो गेयता बढ़ जाएगी:-
'किस क़दर मुश्किल है जीना सोच कर देखो कभी'
Comment by TEJ VEER SINGH on August 30, 2019 at 10:43am

हार्दिक बधाई आदरणीय प्रदीप देवीशरण भट्ट जी। बेहतरीन गज़ल।

जो मेरी है वो ही अब हालत शहर की हो रही
आइने में ख़ुद की सूरत देख डर जाता हूँ मैं

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
17 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आद0 सुरेश कल्याण जी सादर अभिवादन। बढ़िया भावभियक्ति हुई है। वाकई में समय बदल रहा है, लेकिन बदलना तो…"
yesterday
नाथ सोनांचली commented on आशीष यादव's blog post जाने तुमको क्या क्या कहता
"आद0 आशीष यादव जी सादर अभिवादन। बढ़िया श्रृंगार की रचना हुई है"
yesterday
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढ़िया है"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति -----------------प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआतसूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमनहोता…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

नए साल में - गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पूछ सुख का पता फिर नए साल में एक निर्धन  चला  फिर नए साल में।१। * फिर वही रोग  संकट  वही दुश्मनी…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , सहमत - मौन मधुर झंकार  "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"इस प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील  भाईजी|"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service