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लोकेश सिंह's Blog – September 2012 Archive (2)

तजुर्बा ए इश्क

वो रहते है मेरे जानिब से हर पल बेख़बर यारों

जब भी रात होती है खिड़की खोल देते हैं,

क़यामत आएगी इक दिन पता उनको भी है यारों

इसी बहाने से वो  खिड़की से नज़ारा रोज़ लेते  हैं,

मुक़द्दर में था दीदार करना नूर ए हुस्न का

इसी के वास्ते पौधों को वो पानी रोज़ देते हैं,

क़यामत आ ही जाएगी मै मिट जाऊं भी शायद

इसी खौफ में शायद वो नमाजें रोज़ पढ़ते हैं,

सोया रहता हूँ जब मैं बेख़बर हो दीन दुनिया से

वो नीदों  में…

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Added by लोकेश सिंह on September 20, 2012 at 9:16pm — 11 Comments

याद

गुजश्ता दिनों की याद मुझे जब भी आती है ,

मेरी तनहायी मुझसे कुछ कहती है कुछ छुपा जाती है , (१)



याद तेरे वादों की भी है तेरे इरादों की भी है ,


रात आती है और कुछ सताती है कुछ रुलाती है ,(२)



सारे जहां में चर्चे हुए थे अपने लाब्वो लुवाब के,


क्या खाक इश्क करते डरके जालिम समाज से (३)



डर ऐसा हावी हुआ उनके दिलो दिमाग में,

वो छोड़ गये हमको रोता…

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Added by लोकेश सिंह on September 20, 2012 at 1:30pm — 2 Comments

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