वो रहते है मेरे जानिब से हर पल बेख़बर यारों
जब भी रात होती है खिड़की खोल देते हैं,
क़यामत आएगी इक दिन पता उनको भी है यारों
इसी बहाने से वो खिड़की से नज़ारा रोज़ लेते हैं,
मुक़द्दर में था दीदार करना नूर ए हुस्न का
इसी के वास्ते पौधों को वो पानी रोज़ देते हैं,
क़यामत आ ही जाएगी मै मिट जाऊं भी शायद
इसी खौफ में शायद वो नमाजें रोज़ पढ़ते हैं,
सोया रहता हूँ जब मैं बेख़बर हो दीन दुनिया से
वो नीदों में मेरी आकर बातें खूब करते हैं,
रुलाते हैं हंसाते है मुझसे रूठ जाते हैं
मनाते हैं तो न आने की धमकी दे के जाते हैं,
करूँ क्या कुछ नहीं मुझको पता की इश्क़ होता है क्या
करूँ जब हाल दिल का बयां लोगों से वो हँसते मुस्कुराते हैं,
अगर हम मिल न पाएं तो जुदाई भी भली यारों
मुबारक हों उसे खुशियाँ जो बक्शी हैं खुदाई ने ,
तजुर्बा इश्क़ का शायर बना देता है आशिक को
ग़ज़ल बनकर आँखों से आंसू निकलते हैं................
Comment
भाई जी मैंने आपके इस कलाम के लिए शुभ हार्दिक बधाई प्रेषित की है और आपके भविष्य के लेखन के लिए शुभकामना का भाव व्यक्त किया है
कोई व्यक्ति यदि काव्य के किसी रूप में अपने कलम को चलाता है तो निश्चित ही कलम किसी विधा विशेष पर केंद्रित होती है
आपका कलाम मुझे ग़ज़ल के निकट महसूस हुआ और मेरी शुभ कामना है कि आपके कलम से ग़ज़ल की निकटता बढ़ती जाए
मेरे शब्दों से यदि आपको किसी प्रकार का दुःख हुआ हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ
साथ ही यह भी कहूँगा कि काव्य को विधा विशेष पर केंद्रित करना और शिल्पगत विशेषताओं को ध्यान में रखना "सुन्दर कलाई में जड़ाऊ कंगन" वाली बात होती है इसमें बंधंवाली कोई बात तो नहीं दिखती
और आपका खुद के लिए कहना कि
हम कोई कवि या शायर नहीं है जो कुछ बन पड़ा लिख दिया
समझ नहीं आया
भाई कविता लिखेंगे तो कवि और शायरी करेंगे तो शायर तो आप हो ही जायेंगे फिर आपके न मानने से क्या होता है :))))
मुझे आप इस रचना में शायर अधिक दिखे
पुनः हार्दिक बधाई
सादर
तजुर्बा इश्क़ का शायर बना देता है आशिक को
ग़ज़ल बनकर आँखों से आंसू निकलते हैं....,अति सुंदर अभिव्यक्ति लोकेश जी ,हार्दिक बधाई
क़यामत आ ही जाएगी मै मिट जाऊं भी शायद
इसी खौफ में शायद वो नमाजें रोज़ पढ़ते हैं,
सोया रहता हूँ जब मैं बेख़बर हो दीन दुनिया से
वो नीदों में मेरी आकर बातें खूब करते हैं,
Bahut hi Khoob Janaab.. Behad Khoobsurat.
लोकेश सिंह जी आपके शेर बहुत बढ़िया होते हैं आपमें ग़ज़ल विधा के हुनर पूर्णतः दिखाई देते हैं इन्ही भावों से एक बेहतरीन ग़ज़ल का जन्म हो सकता है मैंने भी यहाँ आकर बहुत कुछ सीखा है यहाँ ग़ज़ल की कक्षा समूह को ज्वाइन करेंगे तो मुझे पक्का विशवास है आप बहुत जल्द बहुत अच्छे ग़ज़लकार बन सकते हैं शुभकामनाएं
मुक़द्दर में था दीदार करना नूर ए हुस्न का
इसी के वास्ते पौधों को वो पानी रोज़ देते हैं, very nice
बागी जी सदर अभिवादन स्वीकार करे ,आपका सुझाव प्रेरणादायक है हम जैसे नए लोगो को बहुत कुछ सीखने की आवश्याकता है ,मेरे भावो की सराहना के लिए बहुत बहुत साधुवाद ...लोकेश सिंह
वीनस जी मेरा अभिवादन स्वीकार करे ,बधाई के लिए साधुवाद ,काव्य ईस्वर की अनुकम्पा से स्फुरित होने वाला अहलाद्कारी शब्द समूह है जिसे मैने कलामब्ध्य कर पापके सामने प्रस्तुत किया है ,मुझे विश्वास है आप मेरी इस बात सहमत अवश्य होगे ,मै अपने काव्य से किसी को ठेस नहीं पहुचाना चाहता ,चाहे ओ शब्द्विन्न्यास के ज्ञाता हो या छंद विधान के ,हरपल हर कोई कुछ ना कुछ सीख रहा है,अनुभव ही सीखने का सबसे शसक्त माध्यम है ,सायद अनुभव के आप मुझसे अधिक धनी हो पार मेरा ऐसा कई उद्देश नहीं था की मै आप जैसे गुनी लोगो की अवहेलना करू,हम कोई कवि या शायर नहीं है जो कुछ बन पड़ा लिख दिया ,शेष आप खुद समझते है -- लोकेश सिंह
तजुर्बा इश्क़ का शायर बना देता है आशिक को
ग़ज़ल बनकर आँखों से आंसू निकलते हैं................
आपकी खूबसूरत पंक्तियों को पढ़ता - पढ़ता ये शेर बन गया-
'दर्देइश्क, वामंदगी-ए-आशिक, बेचारगी-ए-दिल
कहाँ मिलती हैं सबको एक साथ इतनी मंजिल'
बधाई हो आपको. राज़
राजीव जी आपकी सराहना से हमे कुछ नया और चित्ताकर्षक लिखने की प्रेरणा मिलेगी ,सराहना के लिए बहुत -बहुत साधुवाद आपके स्नेह का आकांक्षी......लोकेश सिंह
लोकेश जी सुन्दर शब्दों का चयन और सुन्दर भावाभिव्यक्ति इस रचना के प्रति लोगों को आकर्षित करने का प्रमुख कारण हो सकता है
हार्दिक बधाई स्वीकारें
शिल्प के प्रति सजगता ही हमारी रचनाओं को स्थाईत्व प्रदान करती है इन मायनों में गणेश जी का कमेन्ट सारगर्भित है आशा करता हूँ आप अवश्य ध्यान देंगे
लोकेश जी, इस रचना में भावों का अच्छा सम्प्रेषण है, इस रचना को आप ग़ज़ल विधा में भी कह सकते थे, ग़ज़ल विधा की जानकारी ओ बी ओ पर ही "ग़ज़ल की कक्षा" से ले सकते है,बधाई इस प्रस्तुति पर |
आगे भी आपकी और रचनाओं का और अन्य साथियों की रचनाओं पर आपके विचारों का स्वागत रहेगा |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online