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आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला''s Blog – September 2016 Archive (3)

नज़्म : अदाकार (आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला')

किसी को हँसाये,किसी  को रुलाये,
कोई परेशां है,कोई हंसे कोई बिलखे,
कोई चुप- तो कोई चीखे,
उम्र के अलग अलग पड़ावों में,
अभिनय मिले नये-नये किरदारों में,
ज़िन्दगी तू मक़बूल अदाकार है,
कि क्या खूब अदायगी है तेरी...
सब कुछ बिल्कुल मौलिक लगे ।
और उस भगवान् का निर्देशन तो देखो !
कि हम जग के लोगों को सांसारिक लगे ।


आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला'
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 23, 2016 at 3:00pm — No Comments

ग़ज़ल: इक नज़र देखा मुझे तो प्यार मुझसे कर गया,

2122. 2122. 2122. 212



इक नज़र देखा मुझे तो प्यार मुझसे कर गया,

देखकर सारे ज़माने की अदावत फिर गया,



टूटते हैं बेसबब जिस भी तरह पत्त्ती यहाँ,

वो नज़र से ख़ुद किसी के बेवजह ही गिर गया,



दर्द लेकर प्यार का ज़ख़्मी बना आशिक़ नया,

बन शराबी लड़खड़ाते उस तरफ़ से घर गया,



जानकर उसकी ख़ताओं की वजह,अहसास से,

आँख भरता हो दुखी का दिल मिरा बस भर गया,



लोग कहते थे उसे है साहसी कितना बड़ा,

प्यार के अंजाम के पहले निडर भी डर गया ।…



Continue

Added by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 16, 2016 at 11:00pm — 10 Comments

एक नज़्म: सूनापन

सूनापन



एक ख़ला है, ख़ामोशी है,

जिधर देखो उदासी है,

समय सिफ़र हो गया,

आंसू निडर हो गए,

घेरे हैं लोग,पर कोई साथ नहीं,

सर पर किसी का हाथ नहीं,

शाम खाली गिलास सा,

टेबल पर औंधे मुंह पड़ा है,

मन में चिंता दीमक की तरह,

मन को खाये जा रही  है,

दिल की गली ऐसी सूनी है,

मानो दंगे के बाद कर्फ़्यू लगा हो,

शरीर सूखे पेड़ की तरह खड़ा तो है पर,

पीसा के मीनार सा, झुक सा गया है,

कब तक और कहाँ तक

इस सूनेपन, इस अकेलेपन का

बोझ…

Continue

Added by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 1, 2016 at 6:30pm — 8 Comments

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