1212 1122 1212 112
यूँ उम्र भर रहे बेताब देखने के लिये
किसी कँवल का हंसीं ख़ाब देखने के लिये
कहाँ थे देखो सनम हम कहाँ चले आये
वो गुलबदन के वो महताब देखने के लिये
न जाने कब से हक़ीक़त की थी तलब हमको
न जाने कब से थे बेताब देखने के लिये
छुआ तो जाना हर इक ख़्वाब था धुआँ यारो
बचा न कुछ भी याँ नायाब देखने के लिये
क़रीब जा के हर एक चीज खोयी है हमने
लुटे हैं ज़िंदगी शादाब देखने के…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on October 10, 2021 at 12:00pm — 8 Comments
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