2122 1212 22
कोई समझाए माजरा क्या है
तीरगी क्या है यूँ कि रा क्या है
मिटना हर शय का तो मुअय्यन है
ज़िंदगानी में निर्झरा क्या है
इक समंदर के जैसे लगती हैं
नम सी आँखों में दिल भरा क्या है
टूट कर ख़्वाब गिरते रहते हैं
आँख में आईना सरा क्या है
देख कर उनको आरज़ू करना
दिल की हसरत का दिलबरा क्या है
इश्क़ में रूह गर जो महके, तो
मुश्क़ फ़िर क्या है मोगरा क्या है
चाहतें भी हों दायरों में अगर
ऐसी बातों का फ़िर सिरा क्या है
प्यार करना हो गर ख़ता कोई
आख़िर इस पर भी मशविरा क्या है
साथ देती न ज़िंदगी ख़ुद की
फ़िर किसी का भी आसरा क्या है
सर उठाना हो गर गुनाह कोई
फ़िर न पूछो कि दिल डरा क्या है
हो अगर लाज़िमी सवाल-ए-शिकम
फ़िर भला क्या है और बुरा क्या है
मौत बन जाए ज़िंदगी गर जो
फ़िर परी क्या है अप्सरा क्या है
लोग आते हैं बस नमक लेकर
पूछने हाल अब मिरा क्या है
चैन से मरने भी नहीं देते
दिल दुखाने का दायरा क्या है
इक महज़ क़ब्रगाह ताजमहल
देख ली शान-ए-आगरा क्या है
ज़ख़्म ही ज़ख़्म हैं "तमाम आज़ी"
और इसके सिवा हरा क्या है
(मौलिक व अप्रकाशित)
आज़ी तमाम
रा : संस्कृत में प्रकाशमान/ मिस्र में सूर्य का देवता
निर्झरा : अजर अमर
मुअय्यन : निश्चित
Comment
सादर प्रणाम आदरणीय ब्रज जी
हौसला अफ़ज़ाई व मार्गदर्शन के लिए सहृदय धन्यवाद
जी ग़ज़ल अभी अधूरी भी है और गड़बड़ भी
भाई आज़ी तमाम जी बढ़िया कहा...लेकिन मतले का सानी समझ नही आ रहा...ऐसे देखें
नम सी आँखों का फ़लसफ़ा क्या है
कोई समझाए माजरा क्या है
जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, मुबारकबाद पेश करता हूँ।
'कोई समझाए माज़रा क्या है' इस मिसरे में 'माज़रा' से नुक़्ता हटा लीजिए, सही लफ़्ज़ 'माजरा' है।
'देख कर उनको आरज़ू करना
दिल की हसरत का दिलवरा क्या है' इस शे'र के मिसरों में रब्त नहीं है, रब्त के लिए 'उनको' को तुमको करना उचित होगा, 'दिलवरा' को दिलबरा कर लें।
'बिन सनम साँस तक नहीं आती
मुश्क़ फ़िर क्या है मोगरा क्या है' इस शे'र के मिसरों में रब्त नहीं है, ऊला बदलने का प्रयास करें।
'ऐसी बातों का फ़िर सिरा क्या है' यहाँ क़ाफ़िया बदल गया है।
'आख़िर इस पर भी मशवरा क्या है' सही लफ़्ज़ मशविरा होने की वज्ह से यहाँ भी क़ाफ़िया बदल गया है।
'हो अगर लाज़िमी सबाल ए शिकम टंकण त्रुटि ठीक कर लें 'सवाल'
'फ़िर भला क्या है और बुरा क्या है' यहाँ भी क़ाफ़िया बदल गया है। ग़ौरकीजियेगा। सादर।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online