For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल: इश्क़ समझे न कोई दीवाना

2122 1212 22

देख कर मुस्कुराना शर्माना
इश्क़ समझे न कोई दीवाना

है कयामत हर इक अदा इनकी
जुल्फ़ें बिखराना हो या झटकाना

सिर्फ़ आता है इन हसीनों को
दिल चुराना चुरा के ले जाना

क्यों किसी का यूँ दिल जलाते हो
क्यों बनाते हो यूँ ही दीवाना

कितना मुश्किल है चाहतों में सनम
पास रहकर भी दूर हो जाना

बेक़रारी में आहें भरता है
जी न पाता है कोई दीवाना

साल हा साल लम्हा दर लम्हा
जलता रहता है दिल का वीराना

ज़िंदा रहना हो इक सज़ा जैसे
सांस लेना हो कोई ज़ुर्माना

हमने माना कि दिल है दीवाना
कोई अपना है कोई बेगाना

रात है रात कब गुज़रती है
रोज़ भरते हैं कितना हर्ज़ाना

यक ब यक चौंक जाते हैं अक्सर
देख कर खाली खाली सिरहाना

कोई शम्मा है कोई परवाना
कोई पागल है कोई मस्ताना

हर किसी पर ही इक खुमारी है
हर किसी आँख में है मयखाना

दर्द आकर ठहर सा जाता है
दर्द अपना हो या हो बेगाना

दिल हुआ इश्क़ में तमाम "आज़ी"
फ़िर भी क्यों खूँ चकां है अफ़साना

(मौलिक व अप्रकाशित) 

आज़ी तमाम

Views: 924

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Aazi Tamaam on March 20, 2021 at 8:43pm

दिल से शुक्रिया गुरु जी दुविधा दूर करने व एक बेहतरीन सुझाव देने के लिए

सहृदय धन्यवाद

Comment by Samar kabeer on March 20, 2021 at 7:27pm

'सुर्ख है खूँ चकां है अफ़साना'

इस मिसरे को यूँ कह सकते है:-

'फिर भी क्यों खूँ चुकाँ है अफ़साना'

Comment by Aazi Tamaam on March 20, 2021 at 6:56pm

जी आदरणीय जनाब अमीर जी वैसे तो बात मैंने बिल्कुल सीधी ही लिखने की कोशिश की है की

" इश्क़ में दिल के तमाम होने का अफ़साना सुर्ख है और खून में सना हुआ है "

बाकी तो मुझे भी गुणीजनों की राय की प्रतिक्षा रहेगी

सादर

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 20, 2021 at 11:29am

जनाब आज़ी तमाम साहिब, मिसरे //सुर्ख है खूँ चकां है अफ़सानाा// में दो जगह 'है' होने की वजह से दो वाक्य बन रहे हैं -

1. सुर्ख़ है, 2. ख़ूँ चकाँ है अफ़साना, पहले वाक्य में 'सुर्ख़ है' के बाद 'क्या?' सवाल बनता है, अगर आप यह कहना चाहते हैं कि पहले वाक्य का सम्बन्ध दूसरे वाक्य से ये है कि 'ख़ून से तरबतर अफ़साना लाल है' तो रब्त समझ में आता है, लेकिन क्या ये वाक्य विन्यास सही है इस पर गुणीजनों की राय का इंतज़ार रहेगा। सादर। 

Comment by Aazi Tamaam on March 19, 2021 at 11:33pm

दिल हुआ इश्क़ में तमाम का भाव यहाँ दिल की हालत खराब होने से है

इसी दिल की हालत खराब होने के अफ़साने को सुर्ख और खून से सना हुआ बताया गया है इसमें चूँकि दिल का रंग सुर्ख होता है और दिल खून में तर भी होता है तो उसी के अफसाने को सुर्ख और खून से तर बताया गया है

अगर में रब्त समझाने में असमर्थ रहा हूँ तो मेरा नम्बर है 6398099645

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 19, 2021 at 10:12pm

//दोनों मिसरों में रब्त नहीं है समझ नहीं आया माफ़ कीजियेगा

यदि आप अपना मोबाइल नंबर दे सकें तो मुझे आसानी होगी समझने और सीखने में आपसे बात करके//

जनाब आज़ी तमाम साहिब दिल बड़ा रखिए, फ़ोन पर बात करके सीखना और सिखाना सिर्फ़ दो लोगों के बीच होगा जबकि इस मंच पर चर्चा करने से सभी सीखने व सिखाने वाले लाभ ले व दे सकते हैं, और इस मंच का उद्देश्य भी यही है। 

जनाब, 'सुर्ख है खूँ चकां है अफ़साना' इस मिसरे का कथ्य/भाव क्या है समझ नहीं आया, अगर ये समझ आता तो रब्त भी समझ आता, लेकिन आप तो अपने शे'र का रब्त बख़ूबी जानते ही होंगे, कृपया समझा देंगे तो बड़ी मेहरबानी होगी। सादर। 

Comment by Aazi Tamaam on March 19, 2021 at 8:58pm

कितना 21/ मुश्किल 22 / है चाहतों 1212/ में सनम 112

Comment by Aazi Tamaam on March 19, 2021 at 8:52pm

सादर प्रणाम आदरणीय अमीर जी

दोनों मिसरों में रब्त नहीं है समझ नहीं आया माफ़ कीजियेगा

यदि आप अपना मोबाइल नंबर दे सकें तो मुझे आसानी होगी समझने और सीखने में आपसे बात करके

धन्यवाद

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 19, 2021 at 7:28pm

जनाब आज़ी 'तमाम' साहिब आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।

'कितना मुश्किल है चाहतों में सनम'  इस मिसरे की बह्र चेक कर लें।

'दिल हुआ इश्क़ में तमाम "आज़ी"

'सुर्ख है खूँ चकां है अफ़साना'       इस शे'र के मिसरों में रब्त नहीं है, सानी में दो जगह 'है' होने से शिल्प गड़बड़ हो गया है, देखियेग। सादर। 

Comment by Aazi Tamaam on March 19, 2021 at 8:10am

सादर प्रणाम गुरु जी

सहृदय शुक्रिया ग़ज़ल पर वक़्त देने के लिये

थोड़ा सा एडिट किया है एक बार फिर से गौर फरमाएं गुरु जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"स्वागतम"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"है सियासत की ये फ़ितरत जो कहीं हादसा हो उसको जनता के नहीं सामने आने देना सदर"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आदरणीय पंकज जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये सादर"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका सादर"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आदरणीय अमित जी  बहुत बहुत शुक्रिया सज्ञान लेने के लिए कोशिश करती हूं समझने की जॉन साहब को भी…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आ. भाई पंकज जी, हार्दिक आभार।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आ. रिचा जी, हार्दिक आभार।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आ. भाई जयनित जी, हार्दिक आभार।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आ. भाई दिनेश जी, हार्दिक आभार।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, हार्दिक आभार।"
7 hours ago
Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आदरणीय लक्ष्मण जी ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, शेष अमित जी ने विस्तृत इस्लाह की है। "
7 hours ago
Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आदरणीय बाग़पती जी अच्छी ग़ज़ल से मुशायरे की शुरुआत के लिए साधुवाद"
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service