For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल: "दाँव पर आबरू सी रहती है "

2122 1212 22

बे सबब हाव-हू सी रहती है

दाँव पर आबरू सी रहती है

इश्क़ जब भी किसी से होता है

इक अजब जुस्तजू सी रहती है

लम्हा दर लम्हा दिल मचलता है

हर पहर आरज़ू सी रहती है 

यूँ लगे की हर एक चहरे पर

सूरत इक हू-ब-हू सी रहती है

मन भटकता है वन हिरन बनकर

खुशबु इक रू-ब-रू सी रहती है

ख़ुद से ही अब वो बात करता है

दिल में इक गुफ़्तगू सी रहती है

जलके सब ख़ाक हो गये "आज़ी"

फ़िर भी इक राख बू सी रहती है. 

(मौलिक व अप्रकाशित)

आज़ी तमाम

Views: 708

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Aazi Tamaam on March 16, 2021 at 7:12pm

सादर प्रणाम आदरणीय ब्रजेश जी

हौसला अफ़ज़ाई के लिये सहृदय धन्यवाद

Comment by Aazi Tamaam on March 16, 2021 at 7:11pm

सादर प्रणाम आदरणीय धामी जी

हौसला अफ़ज़ाई के लिये सहृदय धन्यवाद

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 16, 2021 at 6:41pm

आ. भाई आज़ी तमाम जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 16, 2021 at 4:10pm

बढ़िया भावपूर्ण ग़ज़ल कही भाई.. बधाई

Comment by Aazi Tamaam on March 15, 2021 at 11:00pm

सादर प्रणाम आदरणीय गुरु जी

आपकी टिप्पणी का बेसब्री से इंतज़ार था

शुक्रिया ग़ज़ल तक आने व मार्गदर्शन करने के लिये

मैं एडिट करके फिर से पोस्ट करता हूँ

Comment by Samar kabeer on March 15, 2021 at 7:30pm

जनाब आज़ी तमाम जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'ख़ुद-ब-ख़ुद से ही बात करता है'

इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा:-

'ख़ुद से ही अब वो बात करता है'

Comment by Aazi Tamaam on March 12, 2021 at 10:59am

सादर प्रणाम आदरणीय अमीर जी

दिल से शुक्रिया ग़ज़ल तक आने एवं मार्गदर्शन कर ग़ज़ल को रोचक बनाने में मदद करने के लिये

क्षमा चाहूँगा राख बू शब्द मैंने मेरे बेहद प्रिय आदरणीय गुलज़ार साहब की नज़्म से लिया है

गौर फर्मायियेगा

जगह नहीं है और डायरी में,
ये ऐस्ट्रे पूरी भर गई है
भरी हुई है जले-बुझे अधकहे खयाल की राख बू से,
खयाल पूरी तरह से जोकि जले नहीं थे
मसल दिय़ा या दबा दिय़ा था बुझे नहीं वो,

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 12, 2021 at 10:43am

जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।

2122 1212 22

दाव पर आबरू सी रहती है             'दाव' को 'दाँव' कर लें 

इक अज़ब जुस्तजू सी रहती है         'अज़ब' को 'अजब' कर लें 

यूँ लगे की हर एक चेहरे पर.             इस शे'र को यूँ भी कह सकते हैं-  'तेरी सूरत हर एक चहरे में'

सूरत इक हू-ब-हू सी रहती है.                                                          दिखती बस हू-ब-हू सी रहती है' 

मन भटकता है वन हिरन बनकर      इस मिसरे को यूँ कहें- 'मन उचकता है ये हिरन बनकर' 

ख़ुद-ब-ख़ुद से ही बात करता है.       इस मिसरे का वाक्य विन्यास ठीक नहीं है। यूंँ कहें- 'ख़ुद ही ख़ुद से मैं बात करता हूँ'

फ़िर भी इक राख-बू सी रहती है.     'राख-बू'? शब्द विन्यास ठीक नहीं है।  सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service