For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : "जी ही पाते हैं की न मर पाते"

अरकान- 2122 1212 22

सिर्फ़ इतना हुनर जो पा जाते

काश हम भी किसी के हो पाते

क्यों तुम्हें इतनी जल्दी रहती है

मेरी सुनते कुछ अपनी फ़रमाते

हर किसी से अदब से मिलते हो

अच्छा होता जो थोड़ा इतराते

चारा गर ही हमारा रूठा है

हम किसे ज़ख़्म अपने दिखलाते

फ़िर कहाँ कोई दिल में यूँ चुभता

गर जो रिश्ता सभी से तोड़ आते

चाहतों में भी यूँ तो दीवाने

जी ही पाते हैं की न मर पाते

यार गर मयकदा नहीं होता

दिल के मारे भला कहाँ जाते

पाई आँसू बहा के रुस्वाई

अच्छा होता जो अश्क़ पी जाते

हम भी हो जाते सुर्ख़ रू "आज़ी"

गर जो ईमान अपना बेच आते

.

(मौलिक व अप्रकाशित) 

आज़ी तमाम.

Views: 501

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Aazi Tamaam on March 9, 2021 at 8:43pm

सादर प्रणाम आदरणीय अमीर जी

ग़ज़ल तक आने एवं हौसला अफ़ज़ाई के लिये दिल से शुक्रिया

Comment by Aazi Tamaam on March 9, 2021 at 8:41pm

सादर प्रणाम गुरू जी

दिल से शुक्रिया इक इक शैर पर विस्तार से समझाने के लिए सादर अभिवादन

मैं एडिट करके फिर से पोस्ट करता हूँ

धन्यवाद

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 9, 2021 at 6:18pm

जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है। बधाई स्वीकार करें। मुहतरम समर कबीर साहिब ने शानदार इस्लाह फ़रमाई है। संज्ञान लीजियेगा। सादर। 

Comment by Samar kabeer on March 9, 2021 at 4:32pm

जनाब आज़ी तमाम जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, लेकिन ग़ज़ल अभी समय चाहती है,बहरहाल बधाई स्वीकार करें ।

'सिर्फ़ इतना हुनर जो पा जाते

काश हम भी किसी से ऊब आते'

मतले का सानी बह्र में नहीं है,सानी यूँ कर सकते हैं:-

'काश हम भी किसी के हो पाते'

'तुमको अपनी ही जल्दी रहती है

सुनते कुछ देर तब न फ़रमाते'

इस शैर के दोनों मिसरों में वाक्य विन्यास ठीक नहीं,यूँ कह सकते हैं:-

'क्यों तुम्हें इतनी जल्दी रहती है

मेरी सुनते कुछ अपनी फ़रमाते'

'हर किसी से अदब से मिलते हैं

अच्छा होता जो थोड़ा इतराते'

इस शैर के ऊला में 'हैं' की जगह "हो" कर लें ।

'चारागर ही अगर जो रूँठा हो

गो किसे ज़ख़्म अपने दिखलाते'

इस शैर को यूँ कहें:-

'चारा गर ही हमारा रूठा है

हम किसे ज़ख़्म अपने दिखलाते'

'फिर कहाँ कोई नश्तर यूँ चुभता

गर अपनो से रिश्ता तोड़ आते'

ये शैर बह्र में नहीं है ।

'रोज़ कहते हो खुद से मर जाओ

जी न लेते कि गर जो मर पाते'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ ।

'आज़ तक रिंद मयकदे के हैं

दिल के मारे भला कहाँ जाते'

इस शैर का ऊला यूँ कहें:-

'यार गर मयकदा नहीं होता'

'अब तो रुसवाईयों का आलम है

अच्छा होता जो अश्क़ पी जाते'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ऊला यूँ कहें:-

'पाई आँसू बहा के रुस्वाई'

मक़्ता ठीक है ।

ग़ज़ल कहने के बाद उसे दो तीन बार पढा भी करें,उसके बाद पोस्ट किया करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
21 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
21 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
yesterday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Jul 2
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Jul 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service