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Savitamishra's Blog – October 2015 Archive (2)

सच्ची सुहागन (लघुकथा)

पूरे दिन घर में आवागमन लगा था | दरवाज़ा खोलते बंद करते श्यामू परेशान हो गया था | घर की गहमागहमी से वह इतना तो समझ चूका था कि बहूरानी का उपवास हैं | सारे घर के लोग उनकी तीमारदारी में लगें थें | माँजी सरगी की तैयारी के लिय उसे बार-बार आवाज दे रही थी | सारी सामग्री उन्हें देने के बाद वह खाना खिलाने लगा घर के सभी सदस्यों को | फिर फुर्सत हो माँजी से कह अपने घर की ओर चल पड़ा |

बाजार की रौनक देख अपनी…

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Added by savitamishra on October 29, 2015 at 8:30pm — 5 Comments

~बोल ~

तुम्हारें श्री मुख से

दो शब्द

निकले कि

मैंने कैद कर लिया

अपने हृदय उपवन में !!



अब हर रोज

दिल से निकाल

दिमाग तक लाऊँगी

फिर कंठ तक

फिर मुस्कराऊँगी

चेहरे पर

एक अलग सी

चमक बिखर जाएँगी

बार बार यही

दुहराती रहूंगी

क्योकि

अच्छी यादों को

बार-बार खाद-पानी

चाहिए ही होता है!!



और तब जाके

एक दिन

तैर जायेंगी

सरसराहट …

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Added by savitamishra on October 21, 2015 at 12:06pm — 6 Comments

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