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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – November 2025 Archive (2)

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२



कर तरक्की जो सभा में बोलता है

बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।।

*

देवता जिस को बनाया आदमी ने

आदमी की सोच ओछी सोचता है।।

*

हैं लगाते पार झोंके नाव जिसकी

है हवा विपरीत जग में बोलता है।।

*

जान  पायेगा  कहाँ  से  देवता को

आदमी क्या आदमी को जानता है।।

*

एक हम हैं कह रहे हैं प्यार…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 11, 2025 at 1:03pm — 1 Comment

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२

****

तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब

भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१।

*

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला

आदमी  का  आदमी से बैर जब।२।

*

दुश्मनो की क्या जरूरत है भला

रक्त  के  रिश्ते  हुए  हैं  गैर जब।३।

*

तन विवश है मन विवश है आज यूँ

क्या करें हम  मनचले  हों पैर जब।४।

*

सोच लो कैसा  समय  तब सामने

मौत मागे  जिन्दगी  की  खैर जब।५।

*

मौलिक/अप्रकाशित

लक्ष्मण धामी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 4, 2025 at 10:32pm — No Comments

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