हमको खबर है कितने, हम बेखबर हो गए
अपने ही घर से कितने बाशिंदे बेघर हो गए
जब हम एक थे तो सारा शहर एक था
जो राहें हुईं अलग हमारी तो सब कुछ बंट गया
और अब तो आलम ये है कि ये सारा शहर दो खेमों में बंट चुका है
आधे इधर हो गए आधे उधर हो गए
अपने ही घर से कितने बाशिंदे बेघर हो गए-2
हर महफिल में सन्नाटा है हर शै सूनी हो गई है
मंज़िल खोती जाती है राहें दूनी हो गई हैं
सदमे में हर कोई यहॉँ सदमे में उधर भी हैं
लफ़्ज़ शोला उगलते हैं आँखें खूनी हो गई…
Added by Ashish Painuly on March 15, 2016 at 6:30pm — 2 Comments
Added by Ashish Painuly on March 10, 2016 at 6:36pm — No Comments
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