सिमट कर नहीं रहता
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(लक्ष्य “अंदाज़”)
वैसे भी मेरे घर की चिलमन में सिमट कर नहीं रहता !!
रंग नहीं खुशबू है वो मधुवन में सिमट कर नहीं रहता !!
गहरी आँखों के पानी में इक किश्ती कोई डूबी तो क्या ,
रूप का दरिया एक ही दरपन में सिमट कर नहीं रहता !!
कल जब वो उस जंगल से ज़ख़्मी हुए पाँव लिए लौटा ,
बोला ये बनफूल किसी चमन में सिमट कर नहीं रहता !!
गीली माटी की सौंध में लिपटे खस को क्या…
ContinueAdded by डॉ.लक्ष्मी कान्त शर्मा on September 13, 2015 at 8:00pm — 3 Comments
बस इतनी सी मेहर रखना
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(लक्ष्य “अंदाज़”)
हम फकीरों से घर की उम्मीद न इधर करना !
ढल जाये शाम तो दरख्त तले भी बसर करना !!
राहे-उल्फत में तुम हवा के परों पर सवार हो ,
अहले-ज़मीं हैं हम ,बस सड़क पे सफ़र करना !!
फूल मुहब्बत के तारीखे-शुआओं से जल गए ,
कोंपलों की आस में अब भी क्यूँ शज़र रखना !!
तुम्हारी हर दुआ कुबूल है उस इलाही के दर ,
दुआओं में याद रखना बस इतनी…
ContinueAdded by डॉ.लक्ष्मी कान्त शर्मा on July 13, 2015 at 2:30pm — 4 Comments
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