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धर्मेन्द्र कुमार सिंह's Blog – January 2017 Archive (2)

ये दुनिया है भूलभुलैया (नवगीत)

ये दुनिया है भूलभुलैया

रची भेड़ियों ने

भेड़ों की खातिर

 

पढ़े लिखे चालाक भेड़िये

गाइड बने हुए हैं इसके

ओढ़ भेड़ की खाल

जिन भेड़ों की स्मृति अच्छी है

उन सबको बागी घोषित कर

रंग दिया है लाल

 

फिर भी कोई राह न पाये

इस डर के मारे

छोड़ रखे मुखबिर

 

भेड़ समझती अपने तन पर

खून पसीने से खेती कर

उगा रही जो ऊन

जब तक राह नहीं मिल जाती

उसे बेचकर अपना चारा

लायेगी दो…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 10, 2017 at 8:13pm — 6 Comments

जो करा रहा है पूजा बस उसी का फ़ायदा है (ग़ज़ल)

बह्र : ११२१ २१२२ ११२१ २१२२

 

जो करा रहा है पूजा बस उसी का फ़ायदा है

न यहाँ तेरा भला है न वहाँ तेरा भला है

 

अभी तक तो आइना सब को दिखा रहा था सच ही

लगा अंडबंड बकने ये स्वयं से जब मिला है

 

न कोई पहुँच सका है किसी एक राह पर चल

वही सच तलक है पहुँचा जो सभी पे चल सका है

 

इसी भोर में परीक्षा मेरी ज़िंदगी की होगी

सो सनम ये जिस्म तेरा मैंने रात भर पढ़ा है

 

यदि ब्लैकहोल को हम न गिनें तो इस जगत…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 1, 2017 at 8:19pm — 15 Comments

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