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“तंत्र को पारदर्शी करो, तंत्र को पारदर्शी करो”। सरकारी दफ़्तर के बाहर सैकड़ों लोगों का जुलूस यही नारा लगाते हुए चला आ रहा था। अंदर अधिकारियों की बैठक चल रही थी। एक अधिकारी ने कहा, “जल्दी ही कुछ किया न गया तो जुलूस लगाने वाले लोग कुछ भी कर सकते हैं”। अंत में सर्वसम्मति से ये निर्णय लिया गया कि तंत्र को पूर्णतया पारदर्शी बना दिया जाय।

कुछ ही दिनों में दफ़्तर की सारी दीवारें ऐसे शीशे की बनवा दी गईं जिससे बाहर की रोशनी अंदर न आ सके लेकिन अंदर की रोशनी बाहर जा सके। अब दफ़्तर का सारा काम काज बाहर से देखा जा सकता था। जनता बहुत खुश थी कि अब दफ़्तर के किसी कर्मचारी की हिम्मत नहीं होगी रिश्वत लेने की।

दफ़्तर के कर्मचारी बहुत खुश थे। पारदर्शी दफ़्तर का बाथरूम पारदर्शी नहीं था और उसे दुनिया का कोई संविधान कोई कानून कभी पारदर्शी नहीं बनवा सकता था। अब तो जाँच का भी कोई खतरा नहीं था क्योंकि दफ़्तर का सारा काम बाहर बैठे जाँच अधिकारियों की आँखों के सामने ही हो रहा था।

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 16, 2015 at 12:04pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय विजय शंकर जी

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 15, 2015 at 11:47pm
आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार जी, लघु-कथा के लिए बहुत बहुत बधाई, सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार का विस्तृत अध्ययन होना चाहिए, रिश्वत तो बहुत छोटी बीमारी रह गई, अब तो पूरा का पूरा बजट, विदेशी सहायता धनराशि , पूरी की पूरी साफ़ कर दी जाती है, जिसे मूर्ख लोग घोटाला कहते हैं , खानेवाले बड़े परिश्रम से उसे घोटते हैं और खाकर साफ़ कर देते हैं, वह भी एक परिश्रम है, घोटाला करानेवाले कभी पकड़े नहीं जाते, सरकारी अफसर, कर्मचारी ही फंस जाएँ तो झेलते रहते हैं उन्हें कोई बचाता भी नहीं , आज सफल वही है जो घोटाला करे भी और पकड़ा भी न जाए , सादर।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 15, 2015 at 11:24pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रक्ताले जी

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 25, 2012 at 6:41pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी सादर, सरकारी कार्य पर बहुत सुन्दर व्यंग.बंद गले कि स्वेटर से भी गर्दन बाहर आ ही जाती है. बधाई स्वीकारें.

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 18, 2012 at 11:09am

Dr.Prachi Singh जी, बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरमा


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 18, 2012 at 10:04am

व्यंग को एक नए तरह से प्रस्तुत किया है आपने इस लघुकथा में. हार्दिक बधाई 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 17, 2012 at 10:45pm

Saurabh Pandey जी, बहुत बहुत शुक्रिया।  आप सही कह रहे हैं ऐसा मुझे भी लगा था। दुबारा विचार करूँगा इस पर। मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 17, 2012 at 10:44pm

Dipak Mashal जी, सही बात है बीरबल ने सच ही कहा था। धन्यवाद

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 17, 2012 at 10:43pm

rajesh kumari जी, बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 17, 2012 at 10:42pm

 seema agrawal जी, बहुत बहुत शुक्रिया

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