Added by Hemant kumar on May 10, 2017 at 11:47am — 8 Comments
2122, 212, 2122, 212
उससे मुझको सच मे कोई शिकायत भी नही,
हाँ मगर दिल से मिलूँ अब ये चाहत भी नही।
इस बुरुत पर ताव देने का मतलब क्या हुआ,
गर बचाई जा सके खुद की इज्जत भी नही।
अब अँधेरा है तो इसका गिला भी क्या करें,
ठीक तो अब रौशनी की तबीअत भी नही।
आती हैं आकर चली जाती हैं यूँ ही मगर,
इन घटाओं मे कोई अब इक़ामत भी नही।
जुल्म सहने का हुआ ये भी इक अन्जाम है,
अब नजर आँखों में आती बगावत भी नही।
मौलिक व…
Added by Hemant kumar on April 20, 2017 at 11:00am — 16 Comments
२१२२/१२१२/२२
हमने अपने ही पाँव काटे हैं,
इस सड़क पर के छाँव काटे हैं।
जो परींदा मजे से रहता था,
उनके तो सारे ठाँव काटे हैं।
दौड़ना चाहती है हर बेवा,
पर ये दुनिया ने पाँव काटे हैं।
वार जिसने भी करना चाहा तो,
उसके तो सारे दाँव काटे हैं।
जानकर जा रहे शहर(१२) तुम भी,
इस शहर(१२)ने ही गाँव काटे हैं।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Hemant kumar on April 6, 2017 at 9:00pm — 12 Comments
२२१२/२२१२/२२१२
बाजा़र मे दिल आज़माया कर कभी,
दिल बेचने भी यार आया कर कभी।
दिल टूटने का दर्द अब होगा नही,
इन पत्थरों से दिल लगाया कर कभी।
माना सितारों से बहुत हैं प्यार पर,
जुगनूओं को घर भी बुलाया कर कभी।
दुनिया अमीरों के मुआफ़िक हैं मगर,
कुछ घर ग़रीबी के सज़ाया कर कभी।
बे-शक ये रास्ते हैं तरक़्की़ के मगर,
पैमाना पर इनका बनाया कर कभी।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Hemant kumar on March 28, 2017 at 9:00pm — 7 Comments
बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आखिर
२१२/२१२/२१२/२
रहनुमाई की बरसात है क्या।
फिर चुनाओं के हालात हैं क्या।
झुठ भी बोलो अगर तो सही है,
ये सियासत के शहरात है क्या।
शह्र मे आग है फिर पुरानी ,
दंगो से फिर ये हालात है क्या।
चीखें फिर से सुनाई दे कोई,
बहनों के लूटे अस्मात है क्या।
लोग कितने मजे से यहाँ हैं,
शह्र के ये हवालात हैं क्या।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Hemant kumar on February 26, 2017 at 8:00pm — 6 Comments
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