टूटी आशाएं,
बिखरा परिवार,
मैं मिट गया ।। 1 ।।
तुम्हारी खुशी,
जीं-तोड़ मेहनत,
फिर भी विफल ।। 2 ।।
बहती पवन,
विकराल रूप,
सब कुछ बंजर ।। 3 ।।
रब नाऱाज,
लहरो का कहर,
बहते आँसू ।। 4 ।।
धुँधली रेखा,
तुम्हारा आगमन,
सूर्य उदय ।। 5 ।।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by DIGVIJAY on December 4, 2015 at 3:00pm — 11 Comments
1222-1222-1222-1222
मुझे गम के समन्दर में अभी बहना नहीं आया ।
सभी यारो ने माना ये सच्च कहना नहीं आया ।।
मुझे कहते रहे कायर इश्क के सूरमां सारे ।
मगर हम मौन हो गए और कुछ कहना नही आया ।।
…
ContinueAdded by DIGVIJAY on November 29, 2015 at 1:00am — 16 Comments
जब जन्म लिया इस माटी में,
तब आँखो तले अँधेरा था,
जब पलक उठी इस दुनिया में,
माँ के आँचल में हुआ सवेरा था,
फिर दिन चढ़ने और ढ़लने कि,
गुत्थी सुलझाने बैठ गया...,
जब एक तरफ देखा उजियाला
तो दूजी तरफ अँधेरा था ।। 1 ।।
छोटा था तो मन में मेरे,
उठता था एक बड़ा अँधेरा ?
क्यूँ रात होती हैं काली,
क्यूँ दिन को होता हैं सवेरा,
किसी ने बोला ये नियम प्रकति का,
तो कोई कहे इन्हे ग्रहों कि चाल...,
पर सच…
ContinueAdded by DIGVIJAY on November 25, 2015 at 7:30pm — 2 Comments
“और भाईजान कैसे है...सब खैरियत तो हैं न?” चिकन शॉप में काम करने वाले प्रकाश के मित्र जावेद ने शिष्टाचार के तहत पूँछा ।
“बस, रहम हैं ऊपर वाले का..और तुम्हारी कैसी गुजर रहीं है, बड़े दिन बाद आना हुआ ईधर ।” प्रकाश ने कहा ।
“बस, काम के सिलसिले में दिल्ली गया था कल ही तो लौटा हूँ...सोचा प्रकाश भाई कि शॉप से चिकन लेता आऊँ वैसे भी बड़े दिन हो गये तुम्हारे दुकान का चिकन खाए हुए ।” जावेद ने जवाब देते हुए कहा ।
“हाँ...हाँ, क्यों नहीं ।” प्रकाश ने कहा ।
“अरे! यार प्रकाश तुम…
ContinueAdded by DIGVIJAY on October 18, 2015 at 7:13pm — 6 Comments
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