जब जन्म लिया इस माटी में,
तब आँखो तले अँधेरा था,
जब पलक उठी इस दुनिया में,
माँ के आँचल में हुआ सवेरा था,
फिर दिन चढ़ने और ढ़लने कि,
गुत्थी सुलझाने बैठ गया...,
जब एक तरफ देखा उजियाला
तो दूजी तरफ अँधेरा था ।। 1 ।।
छोटा था तो मन में मेरे,
उठता था एक बड़ा अँधेरा ?
क्यूँ रात होती हैं काली,
क्यूँ दिन को होता हैं सवेरा,
किसी ने बोला ये नियम प्रकति का,
तो कोई कहे इन्हे ग्रहों कि चाल...,
पर सच बोलूँ होता न सूरज,
होता न दुनिया में अँधेरा ।। 2 ।।
बिन सूरज जीवन कि कल्पना,
लगती कोरी और अँधेरा,
बिन रवी कोई कैसे सोचे,
हो सकता जीवन में उजेरा,
पर कुछ तो खास अवश्य हैं इसमें,
जो बार-बार ये आता हैं...,
अरे एक बार तो जीं कर देखो,
काला, प्यारा, मस्त अँधेरा ।। 3 ।।
बहुतेरो कि दुनिया में,
देखा मैने हर रोज सवेरा,
बहुतेरो के आँगन में,
हर रोज बने सूरज का घेरा,
पर नाम उन्ही का जग ने पाया,
जो मस्त जिए घनघोर अँधेरा...,
अब तो प्यारे गर्व से बोलो,
काला, प्यारा मस्त, अँधेरा ।। 4 ।।
Comment
आदरणीया राजेश कुमारी जी जहाँ तक मेरे अँधेरा शब्द के उपरान्त प्रश्न वाचक चिन्ह के प्रयोग का हैं तो मैने वहाँ पर अँधेरा शब्द कि तुलना प्रश्न से कि हैं.....उठता था मेरे मन में अँधेरा का अर्थ मैने....उठता था मेरे मन में प्रश्न से हैं ।
आपने अपना बहुमूल्य समय एवं कीमती सुझाव मुझे दिया इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ । सादर
बहुत अच्छे भाव एवं सकारात्मक सोच वाली प्रस्तुति है मात्राओं की गणना करके लिखेंगे तो सोने पे सुहागा होगा बहरहाल बहुत बहुत बधाई
छोटा था तो मन में मेरे,
उठता था एक बड़ा अँधेरा ?--यहाँ प्रश्नवाचक चिन्ह की आवश्यकता नहीं थी
क्यूँ रात होती हैं काली,
क्यूँ दिन को होता हैं सवेरा,
इन पंक्तियों को अपने हिसाब से इस तरह करके देखा
छोटा था तो मन में मेरे,
उठता प्रश्न ये गहन घनेरा
क्यूँ होती हैं रातें काली,
उजला क्यूँ होता है सवेरा,
अब देखिये ...बस इसी तरह शब्दों को गूँथते हुए चलिए
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online