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जनाब सचिन कुमार जी आदाब, ख़ूबसूरत भाव के साथ अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर।
मिन्हाँ
तहज़ीब हाफ़ी की ग़ज़ल में 'मिन्हा' नहीं "मिन्हहाँ" शब्द है ।
मिन्हा शब्द तो उर्दू का ही है...एक ग़ज़ल में पढ़ा था ...ख्वाबों को आंखों से मिन्हा करती है...नींद हमेशा मुझसे धोखा करती है...तहजीब हाफी की ग़ज़ल में पढ़ा था....हो सकता है इसका सही प्रयोग नही हुआ हमसे...लाफ़ानी में ला की मात्रा नहीं गिराई जा सकती..इसपर और प्रकाश डाले सर..वरना ऐसे शब्दों पर आगे और गलतियां होंगी मुझसे
// क्या हम इसमे लाफ़ानी को 122 नही ले सकते है//
'लाफ़ानी' को 122 पर नहीं ले सकते ।
'मिन्हा' शब्द किस भाषा का है?
ये मेरा पहला प्रयास था ...आप गुणी जनों इसे बस पढकर सार्थक कर दिया....समर सर मेरी गलतियों को गिनाने का शुक्रिया आगे से और सीखकर फिर लिखूंगा.....मिन्हा का अर्थ मैंने घटकर कम होना, अलग होना ये लिया है....अपने किस्से को लाफ़ानी लिख रहे हैं.... क्या हम इसमे लाफ़ानी को 122 नही ले सकते है
आ. भाई सचिन जी, अच्छी गजजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
ग़ज़ल भावपूर्ण है मित्र...आदरणीय समर जी ने सार्थक समीक्षा की है।
जनाब सचिन जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
'नींद आंखों से हुई है आज मिन्हा'
इस मिसरे में 'मिन्हा' का अर्थ बताने का कष्ट करें ।
'अपने किस्से को लाफ़ानी लिख रहे हैं'
ये मिसरा बह्र में नहीं है, देखियेगा ।
'जो चलाये थे कभी बरसात में हम
कश्ती औ' बारिश का पानी लिख रहे हैं'
इस शैर के ऊला में 'चलाये थे' वाक्य विन्यास ठीक नहीं, और सानी में 'और' शब्द की मात्रा गिराकर "औ" लिखना उचित नहीं, 'और' ही लिखें,पढ़ने वाला मात्रा गिराकर पढ़ लेगा ।
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