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हालत जो तेरी देखी है हैरान हूँ मैं भी....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

221-1221-1221-122

हालत जो तेरी देखी है हैरान हूँ मैं भी
कोने में पड़ा घर के परेशान हूँ मैं भी (1)

गर आप सरल होंगे तो आसान हूँ मैं भी
ज़ालिम हैं अगर आप तो हैवान हूँ मैं भी (2)

ये सूनी दिवारें ही मुझे घूर रहीं हैं
खाली है मकाँ भी मिरा सुनसान हूँ मैं भी (3)

गर मिल भी गए हम भी तो आबाद न होंगे
उजड़ा है अगर तू भी तो वीरान हूँ मैं भी (4)

आएगा किसी दिन वो लगाएगा ठिकाने
कमरे में पड़ा फालतू सामान हूँ मैं भी (5)

वो देखता रहता है मुझे यार हमेशा
इस घर का दरीचा है वो दालान हूँ मैं भी (6)

ख़्वाहिश न किया तू कभी मिलने की 'सालिक'
मालिक है वो इस चाल का दरबान हूँ मैं भी (7)

©सालिक गणवीर
*मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by vijay nikore on September 30, 2021 at 12:38pm

गज़ल अच्छी लगी। पंक्तियों में लय अच्छी बनी है। 

बधाई

Comment by सालिक गणवीर on September 23, 2021 at 5:30am

उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब

आदाब

ग़ज़ल पर आपकी शिर्क़त और सराहना के लिए हृदय से आभारी हूँ. आपकी क़ीमती  इस्लाह से ग़ज़ल सँवर गई है. ममनून हूँ. सलामत रहें.

Comment by Samar kabeer on September 22, 2021 at 3:06pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'हालत जो तेरी देखी है हैरान हूँ मैं भी'

इस मिसरे को उचित लगे तो यूँ कहें:-

'हालत ये तेरी देख के हैरान हूँ मैं भी'

'खाली है मकाँ भी मिरा सुनसान हूँ मैं भी'

इस मिसरे को यूँ कह सकते हैं:-

'इस ख़ाली मकाँ जैसा ही सुनसान हूँ मैं भी'

'गर मिल भी गए हम भी तो आबाद न होंगे
उजड़ा है अगर तू भी तो वीरान हूँ मैं भी'

शैर या ग़ज़ल कहने के बाद उस पर दो तीन बार ग़ौर किया करें, इस शैर में 'भी' शब्द का प्रयोग चार बार हुआ है,क्या आपकी निगाह में ये दुरुस्त है?, इस शैर को यूँ कहें:-

'हम दोनों यहाँ मिल के भी आबाद न होंगे

उजड़े हैं अगर आप तो वीरान हूँ मैं भी'

मक़्ता हटा दें, रदीफ़ से इंसाफ़ नहीं हुआ ।

Comment by सालिक गणवीर on September 18, 2021 at 5:05am

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'जी

सादर अभिवादन

ग़ज़ल फर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए ह्रदय से आभार.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2021 at 8:46pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

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