२१२२-१२१२-२२/११२
और कितना बता दे टालूँ मैं
क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)
छोड़ते ही नहीं ये ग़म मुझ्को
ख़ुद को कितना बता सभालूँ मैं (२)
तू मुझे क़ैद करके मानेगा
क्यों न पिंजरे में ख़ुद को डालूँ मैं (३)
ज़िंदगी दूर है बहुत मुझसे
ज़ह्र है पास क्यों न खा लूँ मैं (४)
ज़िन्दगी लिफ्ट माँगती ही नहीं
मौत माँगे तो क्या बिठा लूँ मैं (५)
पाँव में एक दिन जगह देगा
क्यों न सर पे उसे…
Added by सालिक गणवीर on October 31, 2024 at 4:35pm — 3 Comments
२२१-२१२१-१२२१-२१२
लड़ते झगड़ते रहते हैं यारो सभी से हम
मिलते हैं दुश्मनों से बड़ी सादगी से हम(१)
चक्कर लगाता रहता है दुनिया का एक शख़्स
आगे निकल न पाए तुम्हारी गली से हम (२)
कैसे बिताएँ वक़्त ज़रा सा भी उनके साथ
वो हैं नये समय के पुरानी घड़ी से हम (३)
मिलना है जिसका हक़ उसे धेला नहीं मिला
बाँटे गए हैं मुफ़्त में ही रेवड़ी से हम (४)
जब भी छुपाई हमने कहीं पर तुम्हारी बेंत
पीटे गए हमेशा हमारी छड़ी से हम…
Added by सालिक गणवीर on July 5, 2023 at 5:23pm — 2 Comments
2122-1122-22/112
झूठ बोले हैं न जाने कितने
उसको आते हैं बहाने कितने (1)
मैं किसी से भी तो नाराज नहीं
आ गए लोग मनाने कितने (2)
अब भी लोगों के नई दुनिया में
हैं ख़यालात पुराने कितने (3)
एक भी लफ़्ज मुझे याद नहीं
याद आते हैं वो गाने कितने (4)
घर जला कोई बुझाने न गया
आ गए आग लगाने कितने (5)
साथ आया न निभाने कोई
रस्म आएंँगे निभाने कितने (6)
अब कहीं पर तू ठहर जा…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on February 3, 2022 at 9:33am — 4 Comments
122-122-122-122
यही है शिकायत यही तो गिला है
चराग़ों तले क्यों अँधेरा हुआ है (1)
लुटाया है सब कुछ कहा जा रहा है
मैं ये सोचता हूँ मुझे क्या मिला है (2)
कभी सामने जो अकड़ता बहुत था
वही उसके क़दमों के नीचे पड़ा है (3)
न आगे कोई है न है कोई पीछे
बयाँ दे रहा बीच सबके खड़ा है (4)
बड़ी मुश्किलों से कटी ज़िंदगी ये
न जाने मुक़द्दर में क्या क्या लिखा है (5)
ख़ुशी के दो पल हाथ आते नहीं पर
ये ग़म है कि…
Added by सालिक गणवीर on December 24, 2021 at 11:00pm — 4 Comments
2122-1212-22/112
अब तो इंसाफ भी करें साहिब
हक़ मिरा मुझको दे भी दें साहिब (1)
ऊँचे पेड़ों ने फिर से की साजिश
लोग सब धूप में रहें साहिब (2)
आप सब क्यों उड़े हवाओं में
हम ज़मीं पर ही क्यों चलें साहिब (3)
काग़ज़ों पर लिखा तो पढ़ते हैं
पीठ पर भी कभी लिखें साहिब (4)
न ज़मीं है न आसमाँ अपना
ये बता दो कहाँ रहें साहिब (5)
इतना अफ़सोस है अगर फिर तो
शर्म से डूब कर मरें साहिब (6)
आप सुनते नहीं…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on November 13, 2021 at 9:54pm — 10 Comments
2122-1212-22/112
जाने क्या लोग कर गए होंगे
जी रहे हैं या मर गए होंगे (1)
वो भरी दोपहर गए होंगे
पाँव छालों से भर गए होंगे (2)
लड़कियाँ माँ की तर्ह सीधी हैं
लड़के तो बाप पर गए होंगे (3)
ख़ौफ़ होता है देख कर जिनको
आइना देख डर गए होंगे (4)
टेढ़े-मेढ़े जलेबी जैसे लोग
है ये मुमकिन सुधर गए होंगे (5)
दफ़्न माज़ी को जब किया होगा
याद के गड्ढे भर गए होंगे (6)
हमको जिन पर नहीं…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on October 24, 2021 at 10:00am — 8 Comments
221-1221-1221-122
हालत जो तेरी देखी है हैरान हूँ मैं भी
कोने में पड़ा घर के परेशान हूँ मैं भी (1)
गर आप सरल होंगे तो आसान हूँ मैं भी
ज़ालिम हैं अगर आप तो हैवान हूँ मैं भी (2)
ये सूनी दिवारें ही मुझे घूर रहीं हैं
खाली है मकाँ भी मिरा सुनसान हूँ मैं भी (3)
गर मिल भी गए हम भी तो आबाद न होंगे
उजड़ा है अगर तू भी तो वीरान हूँ मैं भी (4)
आएगा किसी दिन वो लगाएगा ठिकाने
कमरे में पड़ा फालतू सामान हूँ मैं भी…
Added by सालिक गणवीर on September 16, 2021 at 8:30am — 5 Comments
221-1221-1221-122
बेवज़्ह मुझे रोने की आदत भी बहुत थी
पर मुझको रुलाने में सियासत भी बहुत थी (1)
माज़ी को भुला कर मियाँ अच्छा किया मैंने
रखने में उसे याद अज़ीयत भी बहुत थी (2)
मैंने भी बुझा दी थीं वो जलती हुई शम'एँ
कमरे में हवाओं की शरारत भी बहुत थी (3)
है मुझसे अदावत उन्हें अब हद से ज़ियादा
था और ज़माना वो महब्बत भी बहुत थी (4)
ज़ालिम की शिकायत भी करें तो करें किससे
हाकिम की उसी पर ही इनायत भी…
Added by सालिक गणवीर on August 16, 2021 at 8:37pm — 15 Comments
221-1221-1221-122
ये लोग मुझे कुछ भी तो करने नहीं देते
मुश्किल है बहुत जीना ये मरने नहीं देते (1)
खोदा था कुआँ सहरा में हमने कभी मिल कर
कुछ लोग घड़े हमको वाँ भरने नहीं देते (2)
इक उम्र गुज़ारी है यहाँ मैंने सफ़र में
अब पाँव भी मंज़िल पे ठहरने नहीं देते (3)
उसने जो कहा है तो वो कर के ही रहेगा
वादे से उसूल उसको मुकरने नहीं देते (4)
छाता है कभी ज़ीस्त में जब ग़म का अँधेरा
डरता हूँ मगर दोस्त सिहरने…
Added by सालिक गणवीर on August 6, 2021 at 11:01pm — 8 Comments
221-2121-1221-212
मंज़िल की जुस्तजू में तो घर से निकल पड़े
काँटों भरी थी राह प बेख़ौफ़ चल पड़े (1)
भौहें तनीं थीं देख के मुझको ऐ दिल मेरे
कुछ ऐसा कर कि अब उसी माथे प बल पड़े (2)
हर रात जागता हूँ मैं बेवज्ह दोस्तो
उसकी भी नींद में किसी शब तो ख़लल पड़े (3)
सारे बुजुर्ग देख के ख़ामोश थे मगर
बच्चे तो देखते ही खिलौने मचल पड़े (4)
सोचा नहीं था ज़ीस्त ये दिन भी दिखाएगी
देखी जो शक्ल मौत की हम भी उछल पड़े…
Added by सालिक गणवीर on July 23, 2021 at 12:30pm — 9 Comments
Added by सालिक गणवीर on June 20, 2021 at 10:54pm — 6 Comments
221 2121 1221 212
थी अस्ल में सियाह वो रंगीन हम ने की
कुछ इस तरह से रात की तज़ईन हम ने की (1)
उनकी नज़र के सामने गिरने से बच गए
कल आइने में अपनी ही तौहीन हम ने की (2)
अपने गिरोह में हमें शामिल तो कीजिए
लोगों ने दी हैं गालियाँ तहसीन हम ने की (3)
उस ने तो चीर फाड़ के क्या कर दिया इसे
पहलू में दिल नहीं था ये तस्कीन हम ने की (4)
सौ काम ठीक ठाक कीये आज तक मगर
ग़लती भी एक बारहा संगीन हम ने की…
Added by सालिक गणवीर on June 5, 2021 at 9:00am — 10 Comments
221 2121 1221 212
चल आज मिल के दोनोंं क़सम ये उठाएँ हम
तुम हमको भूल जाओ तुम्हें भूल जाएँ हम (1)
इह तरह तो हमारा गला बैठ जाएगा
कब तक असम को अपनी कहानी सुनाएँ हम (2)
पीछा न अपना छोड़ेंगी यादों की बिल्लियाँ
चल यार इनको दूर कहीं छोड़ आएँ हम (3)
तेरे ख़िलाफ़ फिर से न आवाज़ उठ सके
लोगों के साथ अपना गला भी दबाएँ हम (4)
मुद्दत से आरज़ू है हमारी ऐ जान-ए-मन
इक शाम तेरे साथ कभी तो बिताएँ हम…
Added by सालिक गणवीर on May 25, 2021 at 10:30am — 5 Comments
22 22 22 2
जग में नाम कमाना है
इक दिन तो मर जाना है. (1)
अपना दर्द छुपा कर रख
दिल में जो तहख़ाना है. (2)
ग़ैर समझता है मुझको
जिसको अपना माना है. (3)
मार नहीं सकती है भूख
गर क़िस्मत में दाना है. (4)
नई सुराही ले आए
पानी मगर पुराना है. (5)
चिड़िया उड़ जाए न कहीँ
इक पिंजरा बनवाना है. (6)
शक्ल ज़रा सी है बदली
पर जाना-पहचाना है. (7)
*मौलिक…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on May 8, 2021 at 9:00am — 6 Comments
221 2121 1221 212
बेजान था मैं फिर भी तो मारा गया मुझे
कल घाट मौत के यूँ उतारा गया मुझे (1)
मैं जा रहा था रूठ के लेकिन सदा न दी
था सामने खड़ा तो पुकारा गया मुझे (2)
मैं एक साँस में कभी बाहर न आ सकूँ
दरिया में और गहरे उतारा गया मुझे (3)
अक्सर यही हुआ है मैं जब भी दुरुस्त था
बिगड़ा नहीं था फिर भी सुधारा गया मुझे (4)
देता रहूँ सबूत मैं कब तक वज़ूद का
हर बार हर क़दम पे नक़ारा गया मुझे…
Added by सालिक गणवीर on April 7, 2021 at 1:51pm — 9 Comments
212 1222 212 1222
बात मुख्तसर सी थी गर कही नहीं होती
लाठी एक तनकर थी अब खड़ी नहीं होती (1)
छोटे छोटे ख़्वाबों का रोज़ क़त्ल करती है
बेटी क्यों ये आसानी से बड़ी नहीं होती (2)
आपसे मिलूँ गर मैं तो उदास होता हूँ
और जब नहीं मिलते तो ख़ुशी नहीं होती (3)
बढ़ नहीं सकी आगे कार ही उमीदों की
लाल ही रही बत्ती वो हरी नहीं होती (4)
ज़िंदगी में दोनों तो साथ साथ रहते हैं
पर गुलाब काँटों में दोस्ती नहीं होती…
Added by सालिक गणवीर on March 19, 2021 at 11:01pm — 4 Comments
2122 1212 22/112
शम्स हरदम छुपा नहीं रहता
बादलों से ढका नही रहता (1)
लोग मुझको न ढूँढ पाएँगे
मैं कहाँ हूँ पता नहीं रहता (2)
इश्क़ में काम इतने होते हैं
फिर कोई काम का नहीं रहता (3)
लोग आपस में बाँट लेते हैं
मेरा हिस्सा बचा नहीं रहता (4)
हम सभी मिल के एक होते तो
मुल्क इतना बँटा नहीं रहता (5)
लौट आया है सुख मिरे घर में
देख रहता है या नहीं रहता (6)
इक न इक…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on March 5, 2021 at 4:42am — 5 Comments
2122 1212 22/112
यार कब तक डरा करे कोई
मौत का सामना करे कोई (1)
मैं तो उनके क़रीब रहता हूँ
दूर मुझसे रहा करे कोई (2)
मुफ़्त में गर किसी को देना हो
मशविर: दे दिया करे कोई (3)
मयकदे से बताओ ऐ यारो
दूर कब तक रहा करे कोई (4)
क्या ज़मींदोज़ करके मानेगा
और कितना दबा करे कोई (5)
वक्त के साथ भर ही जाएँगे
ज़ख़्म जितने दिया करे कोई (6)
यार "सालिक" की अब ये ख़्वाहिश…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on February 14, 2021 at 10:30pm — 8 Comments
2122 2122 212
तेरे कहने से ही क्या हो जाएगा
जो बुरा है वो भला हो जाएगा (1)
जो पुराना जख़्म माज़ी ने दिया
दो ही दिन में क्या नया हो जाएगा (2)
खाद पानी मिलने से ही क्या शजर
वक़्त से पहले बड़ा हो जाएगा (3)
है अलग सबसे ख़ज़ाना प्यार का
ख़र्च कीजै दोगुना हो जाएगा (4)
दोस्ती में दर्द-ओ-ग़म हो या ख़ुशी
जो भी तेरा है मेरा हो जाएगा (5)
क़द अगर छोटा है उसका दोस्तो
मैं झुका तो वो बड़ा…
Added by सालिक गणवीर on January 29, 2021 at 10:30pm — 11 Comments
2122 1212 22/112
एक पत्थर सा बस पड़ा हूँ मैं
हूँ मुसाफ़िर या रास्ता हूँ मैं (1)
अब कोई ढूँढता नहीं मुझको
एक मुद्दत से लापता हूँ मैं (2)
ज़िंदगी आजकल जहन्नम है
ख़्वाब जन्नत के देखता हूँ मैं (3)
छोड़ कर सब चले गए हैं या
भीड़ में फिर से खो गया हूँ मैं (4)
अब नहीं इंतिज़ार तेरा पर
रास्ता रोज़ देखता हूँ मैं (5)
हर तरफ है अजीब वीरानी
खुद में शायद उजड़ रहा हूँ मैं…
Added by सालिक गणवीर on January 15, 2021 at 8:00pm — 8 Comments
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