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यार कब तक डरा करे कोई
मौत का सामना करे कोई (1)
मैं तो उनके क़रीब रहता हूँ
दूर मुझसे रहा करे कोई (2)
मुफ़्त में गर किसी को देना हो
मशविर: दे दिया करे कोई (3)
मयकदे से बताओ ऐ यारो
दूर कब तक रहा करे कोई (4)
क्या ज़मींदोज़ करके मानेगा
और कितना दबा करे कोई (5)
वक्त के साथ भर ही जाएँगे
ज़ख़्म जितने दिया करे कोई (6)
यार "सालिक" की अब ये ख़्वाहिश है
सिर्फ़ उसकी सुना करे कोई (7)
*मौलिक /अप्रकाशित
©सालिक गणवीर
Comment
जनाब अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत हौसला अफ़जाई के लिए ह्रदय से आभार।सहा क़वाफ़ी वाला शैर हटा दिया है मुहतरम।
भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'जी
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत हौसला अफ़जाई के लिए ह्रदय से आभार।
उस्ताद -ए - मुहतरम Samar kabeer साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत ,क़ीमती इस्लाह और हौसला अफ़जाई के मश्कूर -ओ - ममनून हूँ। सहा क़वाफ़ी वाला शैर हटा दिया है मुहतरम।
आ. भाई सलिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आ. भाई समर जी के सुझावों से गजल और निखर सकती है , देखिएगा।
जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ालिब की ज़मीन में ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'इससे कब तक डरा करे कोई'
इस मिसरे को यूँ कहें:-
'यार कब तक डरा करे कोई'
'तेरा एहसान है बहुत मुझ पर
बोझ कैसे सहा करे कोई'
इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,
दूसरी बात ये कि बोझ उठाया जाता है,इसके लिये 'सहा' शब्द उचित नहीं ,ग़ौर करें ।
'मयकदा पास में नहीं लेकिन'
इस मिसरे में 'पास' शब्द के साथ 'में' का प्रयोग उचित नहीं होता,यूँ कह सकते हैं:-
'मयकदे से बताओ ऐ यारो'
'वक्त के साथ भर ही जाता है
ज़ख्म फिर से हरा करे कोई'
इस शैर को यूँ कहें:-
'वक़्त के साथ भर ही जाएँगे
ज़ख़्म जितने दिया करे कोई'
'यार "सालिक" कहा करो कुछ भी'
इस मिसरे को यूँ कहें:-
'यार 'सालिक' की अब ये ख़्वाहिश है'
जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें। रदीफ़ 'करे कोई' के साथ इन्साफ़ नहीं हो रहा है। टाईटल में त्रुटिवश सालिक गणवीर की जगह सालिम गणवीर टंकित हो गया है, देखियेेगा।
भाई बृजेश कुमार 'ब्रज' जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए शुक्रिया अदा करता हूँ
बढ़िया ग़ज़ल कही आदरणीय....बधाई
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