2122 1122 1122 22
जिसको हम ग़ैर समझते थे हमारा निकला
उससे रिश्ता तो कई साल पुराना निकला (1)
हम भी हरचंद गुनहगार नहीं थे लेकिन
बे-क़ुसूरों में फ़क़त नाम तुम्हारा निकला (2)
हम जिसे क़ैद समझते थे बदन में अपने
वक़्त आया तो वो आज़ाद परिंदा निकला (3)
जान पर खेल के जाँ मेरी बचाई उसने
मैं जिसे समझा था क़ातिल वो मसीहा निकला (4)
दोस्तो जान छिड़कता था जो कल तक मुझ पर
आज वो शख़्स मेरे ख़ून का प्यासा निकला (5)
वक़्त के साथ बड़ा होगा यही सोचा था
दिल मगर आज भी बच्चे के ही जैसा निकला (6)
मैं कहाँ जाके करूँ उसकी शिकायत 'सालिक'
मैं जिसे अपना समझता था पराया निकला (7)
*मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
भाई आशीष यादव जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और हौसला अफजाई के लिए आपका शुक्रग़ुजार हूँ.
बहुत खूब। बढ़िया गजल पर बधाई स्वीकार कीजिए।
मुहतरमा डिंपल शर्मा जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ. सादर .
आदरणीय सालिक गणवीर जी नमस्ते खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें,पाँचवा शेर बहुत ख़ूब हुआ है विशेष बधाई।
भाई सुरेश नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ. सादर एवं सप्रेम.
आदरणीय समर कबीर साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.माज़रत चाहूूंंगा जनाब,अभी यह शैर हटा रहा हूँ.
जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
'एक ही दिन में मिरा ज़र्द हुआ है चहरा
जिस्म से ख़ून मगर कल तो ज़रा सा निकला'
ये शैर इस ग़ज़ल में भर्ती का लगा ।
आद0 सालीक गणवीर जी सादर अभिवादन। बहुत उम्दः ग़ज़ल हुई है। शैर दर शैर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल करें। सादर
आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद'साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.
आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, नमस्कार। बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है जनाब, आपको इस पर ख़ूब सारी दाद और हार्दिक बधाई।
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