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रस्ते की बात है न ये रहबर की बात है
पा लेना मंज़िलों को मुक़द्दर की बात है
ये बोरिया की है मिरे बिस्तर की बात है
फूलों की सेज मिलना मुक़द्दर की बात है
उस वाक़िआ का ज़िक्र मुनासिब नहीं यहाँ
चल घर पे चलके बात करें घर की बात है
कब कौन किसके शाने पे चढ़ जाए क्या पता
ऊपर पहुँचना भी तो सुअवसर की बात है
सब की क़लम से एक ही क़िस्सा निकलता था
आज़ादी छिन गई थी पिछत्तर की बात है
बरसात मॉनसून की जिसको उड़ा गई
वो तेरी छत नहीं मेरे छप्पर की बात है
हाकिम ने दे दी आज इजाज़त कि काट दो
दर-अस्ल वो जनाब मिरे सर की बात है
*मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
भाई आशीष यादव जी.
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ. सादर एवं सप्रेम.
एक बढ़िया गजल पर बधाई स्वीकार कीजिए।
आदरणीया डिंपल शर्मा जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ. सादर एवं सप्रेम.
आदरणीय सालिक गणवीर जी नमस्ते, खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें।
उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.आपकी इस्लाह की ज़रूरत थी मुहतरम. बहुत शुक्रिय: नवाज़िशें.
जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'उस वाक़िये का ज़िक्र मुनासिब नहीं यहाँ'
इस मिसरे में 'वाक़िये' को "वाक़िआ" कर लें ।
'बरसात मॉनसून की उसको थी ले उड़ी
छत आपकी नहीं मेरे छप्पर की बात है'
इस शैर के सानी का शिल्प कमज़ोर है, यूँ कर लें:-
'बरसात मानसून की जिसको उड़ा गई
वो तेरी छत नहीं मेरे छप्पर की बात है'
आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी ' मुसाफिर '
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.
आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर'साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.
आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें ।
जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, शानदार ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। मक़्ता लाजवाब है। सादर।
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