For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जग में नाम कमाना है....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

22 22 22 2

जग में नाम कमाना है
इक दिन तो मर जाना है. (1)

अपना दर्द छुपा कर रख
दिल में जो तहख़ाना है. (2)

ग़ैर समझता है मुझको
जिसको अपना माना है. (3)

मार नहीं सकती है भूख
गर क़िस्मत में दाना है. (4)

नई सुराही ले आए
पानी मगर पुराना है. (5)

चिड़िया उड़ जाए न कहीँ
इक पिंजरा बनवाना है. (6)

शक्ल ज़रा सी है बदली
पर जाना-पहचाना है. (7)

*मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 680

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on May 25, 2021 at 10:44am

प्रिय भाई ब्रजेश जी

सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए शुक्रगुज़ार हूँ.

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 19, 2021 at 5:36pm

अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय सालिक जी...

Comment by सालिक गणवीर on May 9, 2021 at 11:47am

प्रिय भाई गुरप्रीत सिंह जी

सादर अभिवादन

ग़ज़ल तक आने और सराहना के लिए बहुत शुक्रियः. मतला पहले यही लिखा था..

इक दिन तो मर जाना है... यकीन कीजिये अब यही रहेगा.

अपना दर्द छुपा कर रख..

दूसरे शैरका ऊला यूँ पढ़ा जाए.

नई सुराही आई है...

पाँचवे  शैर का ऊला यूँ पढ़ा जाए.

इन ग़लतियों पर ध्यान आकर्षण के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ.

Comment by सालिक गणवीर on May 9, 2021 at 11:35am

आदरणीय भाई लक्ष्मण जी

सादर प्रणाम

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए आभार व्यक्त करता हूँ.

Comment by Gurpreet Singh jammu on May 9, 2021 at 11:18am

आदरणीय सालिक गणवीर जी नमस्कार । आप बहुत अच्छी ग़ज़ल कहते है । लेकिन माफी चाहता हूं ये ग़ज़ल मुझे उतनी अच्छी नहीं लगी।

मतले के सानी में " बाद उसके " कुछ ठीक नहीं लग रहा। 
फिर इक दिन मर जाना है ।  
शायद ऐसा कुछ बेहतर रहेगा ।

रखता हूं मैं दर्द छुपा कर,
दिल में जो तहखाना है ।
यहां तहखाना क़ाफिया का बहुत सुंदर रूप में उपयोग किया है आपने । वाह वाह ।
लेकिन इस शेर के ऊला में एक मात्रा ज्यादा हो गई है ।


पांचवें शेर के ऊला में भविष्य की जब की सानी में वर्तमान की बात की जा  रही है। 


मैंने अपनी तुच्छ बुद्धि के अनुसार जो समझ में आया लिखने की कोशिश की है सर जी । बाकी ये सही है या नही गुणिजन बताएंगे जी ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 8, 2021 at 5:31pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । सुन्दर गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service