221 2121 1221 212
थी अस्ल में सियाह वो रंगीन हम ने की
कुछ इस तरह से रात की तज़ईन हम ने की (1)
उनकी नज़र के सामने गिरने से बच गए
कल आइने में अपनी ही तौहीन हम ने की (2)
अपने गिरोह में हमें शामिल तो कीजिए
लोगों ने दी हैं गालियाँ तहसीन हम ने की (3)
उस ने तो चीर फाड़ के क्या कर दिया इसे
पहलू में दिल नहीं था ये तस्कीन हम ने की (4)
सौ काम ठीक ठाक कीये आज तक मगर
ग़लती भी एक बारहा संगीन हम ने की (5)
लोगों ने जब दुआएँ दीं तो कुछ नहीं कहा
जब तुम ने बद्दुआएँ दीं आमीन हम ने की (6)
माज़ी को याद कर लिया फिर सुब्ह दोस्तो
इस तरह शाम आज भी ग़मगीन हम ने की (7)
मौलिक/अप्रकाशित
©सालिक गणवीर
Comment
आदरणीय Samar kabeerसाहिब
आदाब
जनाब चेतन जी ने जो ग़लती बताई है वो तो ग़लती है ही नहीं फिर सुधार क्या करेंगे ?
सब का ईगो satisfy करना पड़ता है मुहतरम
आदरणीय भाई Nilesh Shevgaonkar जी
सादर अभिवादन
पटल और ग़ज़ल पर आपको बहुत दिनों बाद देख कर ख़ुशी हुई। सराहना के लिए हार्दिक आभार। ये इस ग़ज़ल करेक्टेड वर्शन ही है। सुधार करने की कोशिश करता हूँ
आ. सालिक जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है.. बधाई...
दूसरे शेर के मिसरों में रब्त नहीं बन पाया शायद ...
.
लोगों ने दी हैं गालियाँ तहसीन हम ने की,,,यहाँ हैं की जगह जो अधिक बेहतर होता..
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पुन: बढाई
जनाब चेतन जी ने जो ग़लती बताई है वो तो ग़लती है ही नहीं फिर सुधार क्या करेंगे ?
आदरणीय Chetan Prakash साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ।जो ग़लती हुई है उसे दुरुस्त करने का प्रयास कर आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ. .सादर
आदरणीय Samar kabeerसाहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। आप के सानिघ्य में रह कर जो भी सीख पाया उसके बावजूद ग़लतियाँ हो रहीं हैं मुहतरम ,जो ग़लती हुई है उसे दुरुस्त करने का प्रयास कर आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ. .सादर
आदरणीय Ravi Shukla साहिब
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। आप जैसे गुणीजनों के सानिध्य में रह कर ही हम सब सीख रहे हैं आदरणीय। मतले में जो ग़लती हुई है उसे दुरुस्त करने का प्रयास कर आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ. .सादर
जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन ग़ज़ल अभी समय चाहती है ।
मतले पर जनाब रवि शुक्ल जी से सहमत हूँ, लेकिन एक कमी और है वो ये कि ऊला में 'वारदातें' और सानी में 'रातें' शब्द बहुवचन में होने के कारण रदीफ़ 'हमने की' की बजाय "हमने कीं" हो रही है, देखें ।
'सौ काम अब तलक तो बहतरीन कर लीये
जीवन में ग़लतियाँ भी दो-तीन हम ने की'
ये शैर बह्र से ख़ारिज है,और इसके सानी में 'ग़लतियाँ' शब्द बहुवचन होने के कारण रदीफ़ बदल रही है,ग़ौर करें ।
ग़ज़ल कहने के बाद उसे दो तीन बार पढ़ा करें, तो ग़लतियों के इमकान कम होंगे ।
आदाब भाई, गणवीर सलिक, दूसरे शैर का ऊला मुझे दोष पूरऱ्ण लगा, क्योंकि नज़र ( 21 ) पर लिया जाना चाहिए ।
आदरणीय सालिक गणवीर जी गजल की उम्दा कोशिश हुई है इसके लिये दिली मुबारक बाद कुबूल करें । एक दो बाते कहना चाहूँगा मतले में रंगीन और संगीन से जो काफिया तय हुआ है वो आगे गजल मे नहीं बन पाया है तो मतले को दुबारा देखने कीगुजारिश है । पॉचवे शेर का उला भी बहर के हिसाब से एक बार फिर से देखियेगा ।सादर
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