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उसे पहले कभी देखा नहीं था
वो दिल के पास जो रहता नहीं था (1)
लगी है शह्र की इसको हवा अब
हमारा गाँव तो ऐसा नहीं था (2)
बहुत कुछ बोलती थीं आँखें उसकी
ज़ुबाँ से वो कभी कहता नहीं था (3)
अँधेरों ने रखा था क़ैद जब तक
उजाला दूर तक फैला नहीं था (4)
न जाने क्या हुआ भरता नहीं है
पुराना घाव तो गहरा नहीं था (5)
वही तन कर खड़ा रहता है आगे
कभी जो सामने बैठा नहीं था (6)
रखा था क़ैद में यादों ने तेरी
वहाँ पर तो कहीं पहरा नहीं था (7)
बिका मैं मुफ़्त में कल रात"सालिक"
किसी की जेब में पैसा नहीं था (8)
*मौलिक/अप्रकाशित
Comment
Rachna Bhatiaजी
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपका हार्दिक आभार
आदरणीय सालिक गणवीर जी बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई।बधाई स्वीकार करें।
उस्ताद - ए - मुहतरम Samar kabeer साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक आभार। आपकी क़ीमती इस्लाह से ग़ज़ल संवर गई है जनाब। ममनून हूँ ,सलामत रहें
भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपका हार्दिक आभार
जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
'वो दिल के पास भी रहता नहीं था'
इस मिसरे में 'भी' की जगह "जो" शब्द उचित होगा ।
आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । उत्तम गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
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