For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यहाँ तो बहुत हैं अभी यार मेरे.....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

122 122 122 122

यहाँ तो बहुत हैं अभी यार मेरे
मगर याँ अदू भी हैं दो-चार मेरे (1)

कभी भूलकर भी न उनको सज़ा दी
रहे उम्र-भर जो गुनहगार मेरे (2)

हिकारत से अब देखते हैं मुझे भी
यही लोग थे कल तलबगार मेरे (3)

मुझे टुकड़ों में बाट कर ही रहेंगे
हैं दुनिया में जो लोग हक़दार मेरे (4)

जो रिश्ते सभी तोड़ कर जा चुका है 
उसी से जुड़े हैं अभी तार मेरे (5)

वही मिल गये हैं अभी दुश्मनों से
यही कल तलक थे तरफ़-दार मेरे (6)

मुझे मिल गई है वहीं यार मिट्टी
जहाँ दफ़्न हैं अब ज़मींदार मेरे (7)

वही बिक रहे हैं सर-ए-आम "सालिक"
यही लोग कल थे ख़रीदार मेरे (8)

* मौलिक/अप्रकाशित

Views: 970

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on January 1, 2021 at 7:38pm

आदरणीय भाई सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार.

Comment by सालिक गणवीर on January 1, 2021 at 7:37pm

आदरणीय भाई dandpani nahak जी
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार.

Comment by नाथ सोनांचली on December 30, 2020 at 3:00pm

आद0 भाई सालीक गनवीर जी सादर अभिवादन

बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Samar kabeer on December 29, 2020 at 10:38pm

टाइटल भी एडिट कर दें ।

Comment by सालिक गणवीर on December 29, 2020 at 7:43pm

उस्ताद-ए -मुहतरम Samar kabeer  साहिब
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार। आपकी इस्लाह के लिए ममनून हूँ. आइंदा ग़लती नहीं होगी आदरणीय ,मुआफ़ कर दें।

Comment by सालिक गणवीर on December 29, 2020 at 7:40pm

मुहतरम अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार

Comment by सालिक गणवीर on December 29, 2020 at 7:39pm

आदरणीय भाई  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार.

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 29, 2020 at 10:09am

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल की उम्दा काविश है, मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर।

Comment by Samar kabeer on December 28, 2020 at 5:34pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'यहाँ पर बहुत हैं अभी यार मेरे'

इस मिसरे में 'यहाँ' शब्द के साथ 'पर' का प्रयोग उचित नहीं(पहले भी बता चुका हूँ)इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

'यहाँ तो बहुत हैं अभी यार मेरे'

'यही अस्ल में भी हैं हक़दार मेरे'

इस मिसरे को यूँ कहें:-

'हैं दुनिया में जो लोग हक़दार मेरे'

'वही तोड़ कर जा चुका है सभी से'

इस मिसरे को यूँ कहें:-

'जो रिश्ते सभी तोड़ कर जा चुका है'

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2020 at 10:35pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । उत्तम गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service