For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")



ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।
जब  चाहो  तब  प्यार से, खोल सके तारीख।१।
*
मन की गाँठे मत कसो, देकर बेढब जोर
इससे  केवल  टूटती, अपनेपन  की डोर।२।
*
दुर्जन केवल बाँधते, लिखके सबका नाम
लेकिन गाँठें खोलना, रहा संत का काम।३।
*
छोटी-छोटी बात जब, बनकर उभरे गाँठ
सज्जन को वह पीर दे, दुर्जन को दे ठाँठ।४।
*
रिश्तो को कुछ धूप दो, मन की गाँठे खोल
उनको मत मजबूत कर, कड़वी बातें बोल।५।
*
बातें कहकर खोल दे, बाँध न रहकर मौन
मन की गाँठें बाँधकर, सुख पाता है कौन।६।
*
आँगन जाते हैं  सिकुड़, मन की गाँठें देख
मन की गाँठों के लिए, कुछ तो खींचो रेख।७।
*
मन में गाँठें बाँध जो, चला शिखा है खोल
धनानंद सा फिर उसे, मत यूँ हल्का तोल।८।
*
गाँठों को झट खोल मन, ऐसे ही मत छोड़
सम्बंधों का  प्रेम  रस, जो  दें सदा निजोड़।९।
*
भली न होती गाँठ है, पड़े किसी भी ठौर
लेकिन मन में जो  पड़े, करे बुरा हर दौर।१०।
**
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 70

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2025 at 1:05pm

आदरणीय भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और विस्तार से सुझाव के लिए आभार। इंगित दोहों में कु सुधार किया है मार्गदर्शन करें। सादर..

//ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।
जब  चाहो  तब  प्यार से, खोल सके तारीख।१। ......... खोल सको तारीस् .. //
*
( यहाँ मैंने व्यक्ति को सम्बोधित करके लिखा है। आपके सुझाव में सम्बोधन समय को हो रहा है, मार्गदर्शन करें ।)

*
//छोटी-छोटी बात जब, बनकर उभरे गाँठ
सज्जन को वह पीर दे, दुर्जन को दे ठाँठ।४।  ... ठाँठ कुछ स्पष्ट नहीं हुआ, आदरणीय //

- दुर्जन को दे साँठ।४//
*
//आँगन जाते हैं  सिकुड़, मन की गाँठें देख
मन की गाँठों के लिए, कुछ तो खींचो रेख।७।  ,... तीसरे और चौथे चरण के विन्यास को कुछ और समय दें >..///
*
मन की गाँठों को न कर, लम्बी-चोड़ी रेख


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2025 at 3:37pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, 

ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।
जब  चाहो  तब  प्यार से, खोल सके तारीख।१। ......... खोल सको तारीस् .. 
*
मन की गाँठे मत कसो, देकर बेढब जोर
इससे  केवल  टूटती, अपनेपन  की डोर।२।  .. वाह 
*
दुर्जन केवल बाँधते, लिखके सबका नाम
लेकिन गाँठें खोलना, रहा संत का काम।३। ... सदा संत के काम 
*
छोटी-छोटी बात जब, बनकर उभरे गाँठ
सज्जन को वह पीर दे, दुर्जन को दे ठाँठ।४।  ... ठाँठ कुछ स्पष्ट नहीं हुआ, आदरणीय 
*
रिश्तो को कुछ धूप दो, मन की गाँठे खोल
उनको मत मजबूत कर, कड़वी बातें बोल।५।   ... गाँठें मत मजबूत कर, 
*
बातें कहकर खोल दे, बाँध न रहकर मौन
मन की गाँठें बाँधकर, सुख पाता है कौन।६। ... सही बात ... मन मे गाँठें बाँध कर ...
*
आँगन जाते हैं  सिकुड़, मन की गाँठें देख
मन की गाँठों के लिए, कुछ तो खींचो रेख।७।  ,... तीसरे और चौथे चरण के विन्यास को कुछ और समय दें >..
*
मन में गाँठें बाँध जो, चला शिखा है खोल    ....   चला शिखा को खोल 
धनानंद सा फिर उसे, मत यूँ हल्का तोल।८।  ... घनानंद सा तुम उसे .. 
*
गाँठों को झट खोल मन, ऐसे ही मत छोड़    
सम्बंधों का  प्रेम  रस, जो  दें सदा निजोड़।९।   .... निचोड़ शुद्ध वर्तनी है. 
*
भली न होती गाँठ है, पड़े किसी भी ठौर
लेकिन मन में जो  पड़े, करे बुरा हर दौर।१०। ... बढिया .. 

तनिक और समय दें टो दोहे व्यवस्थित हो जाएँगे 

प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाइयाँ 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 7, 2025 at 8:06am

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति से प्रसन्नता हुई। हार्दिक आभार।

विस्तार से दोष निवारण करने के लिए हार्दिक आभार।

Comment by Chetan Prakash on March 6, 2025 at 9:29am

भाई, सुन्दर दोहे रचे आपने ! हाँ, किन्तु कहीं- कहीं व्याकरण की अशुद्धियाँ भी हैं, जैसे:

( 1 ) पहला दोहा तृतीय  चरण , " जब चाहो तब प्यार से"  पूर दोहे में कर्ता ( यद्यपि अदृश्य ' तुम ) के सापेक्ष  " चाहो" के स्थान पर  'चाहे' आना चाहिए।

( 2 )  चौथे दोहे का द्वितीय चरण "ठाँठ" पर समाप्त हो रहा है, किन्तु वर्तनी  दोष पूर्ण है ।

( 3 )आठवें दोहे का तृतीय चरण,  " धनानंद" से शुरु होता है,  सही वर्तनी, ' घनानंद' है ।

( 4 ) नौवें दोहे में, " निजोड़" के स्थान पर,  ' निचोड़' होना चाहिए।  सादर साभार!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service