For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

संस्मरण (Reminiscence)

अभी कुछ दिनो पहले

बचपन के बीत जाने के बाद 
एक खेल खेला करते थे...
नाम छुपा कर अधरों पर
एक फूल संभाले हाथों   मे
बडी उम्मीद के साथ 
पंखुरियाँ तोड़ते हुए कहना,
'He loves me, he loves me not'
हारना  तो एक फूल और,
जीतते तो अनजाने ही 
रंग गुलनार!
तब कब समझा और कब जाना
के हर एक हासिल पर यूं  ही
सौ- सौ कुर्बानियाँ होंगी
बिखरे लम्हों को 
चुनते हुए आज,
उन सूखी पँखुरियों  की याद आई है.

Views: 554

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2011 at 9:21pm

//हारना  तो एक फूल और,

जीतते तो अनजाने ही 
रंग गुलनार!
तब कब समझा और कब जाना
के हर एक हासिल पर यूं  ही
सौ- सौ कुर्बानियाँ होंगी
बिखरे लम्हों को 
चुनते हुए आज,
उन सूखी पँखुरियों  की याद आई है.//
आदरणीया आराधना जी !  .......बचपन के मासूम रंगों से सराबोर इस सशक्त कविता के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें .....आप पर माँ सरस्वती की कृपा है,....:-)
Comment by Er. Pawan Kumar Shukla on September 10, 2011 at 12:22pm

heart touching

Comment by Aradhana on July 28, 2011 at 6:37pm

संगीता जी, हमे कई बार लगता है के जैसे बचपन के बाद एक बच्चा हुमारे अंदर कहीं छुपा रहता है वैसे ही किशोरावस्था भी कहीं ना कहीं तो रह जाती है...और कभी कुछ जाना पहचाना सा दिख जाए तो हल्के से मुस्कुरा देती है और शायद कभी फिर 'गुलनार' भी हो जाती है. आपने वक़्त निकल कर हुमारी  कविता पढ़ी, बहुत धन्यवाद.

Comment by Aradhana on July 28, 2011 at 6:28pm

अल्पना, ये वक़्त हम दोनो के लिए एक साथ आया था सो तुम सबसेअच्छा समझोगी. बहुत अच्छा लगा जान कर कि तुम्हे कविता पसंद आई.

Comment by sangeeta swarup on July 28, 2011 at 3:40pm

किशोरावस्था का खेल ..जीत पर लाली का छाना ..और उसको सच मान लेना ... आज वक्त के साथ यथार्थ को भोगते हुए यह सब याद आना ... बहुत खूबसूरती से संजो दिया है आपने अपनी रचना में ..सुन्दर भावाभिव्यक्ति 

Comment by alpana bhattacharya on July 27, 2011 at 2:25pm

 haar jane pe... pure yakin se ,  phir ....phir se ek phool leker .......he love me... aane tak kosish kerte jana..... ye din aate to bahuton ki zindagi me honge.... per itni khubsurti se express ker pana........ bahut khub Aradhdna.

Comment by Aradhana on July 27, 2011 at 8:36am

सतीश जी, आपकी सराहना के हम आभारी हैं, बहुत धन्यवाद

Comment by satish mapatpuri on July 27, 2011 at 12:56am
पंखुरियाँ तोड़ते हुए कहना,
'He loves me, he loves me not'
हारना  तो एक फूल और,
जीतते तो अनजाने ही
रंग गुलनार!

अभिनव अभिव्यक्ति

Comment by Aradhana on July 26, 2011 at 11:02am
Sanjay ji, our past is the strongest foundation of our today. If we miss to connect the two in our journey of life we remain incomplete and keep searching for ourselves for the rest of our lives. I'm so glad you liked it. Thanks..
Comment by Aradhana on July 26, 2011 at 10:57am

सौरभ जी, जीवन के बीते हुए पलों से हुमारा आज कभी अलग नही होता, कहीं ना कहीं उनकी छाप हमारे वर्तमान पर अंकित है. और कई बार हमें बहुत कुछ सीखा भी जाती हैं. आपकी सराहना के हम अभारी है.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service